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Himachal Pradesh | हिमाचल का इतिहास : मध्यकालीन इतिहास

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हिमाचल प्रदेश | हिमाचल का इतिहास : मध्यकालीन इतिहास

(i) प्रागैतिहासिक काल - मारकंडा और सिरसा-सतलुज घाटी में पाए गए औजार चालीस हजार वर्ष पुराने हैं। हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक काल में मध्य एशिया से आर्यों तथा भारत के मैदानी इलाकों से पहाड़ों पर लोगों के बसने का इतिहास प्रस्तुत करता है। भारत के मैदानों से होकर आकर बसने वाले लोगों से पूर्व कोल जिन्हें आज कोली, हाली, डोम और चनाल कहा जाता है। सभवत: हिमाचल के प्राचीनतम निवासी है।

(ii) वैदिक काल और खस - ऋग्वेद में हिमाचल प्रदेश के प्राचीन निवासियों का दस्यु, निषाद और दशास के रूप में वर्णन मिलता है। दस्यु राजा 'शांबर' के पास यमुना से व्यास के बीच की पहाड़ियों में 99 किले थे। दस्यु राजा शांबर और आर्य राजा दिवोदास के बीच 40 वर्षों तक युद्ध हुआ। अंत में दिवोदास के उदब्रज नामक स्थान पर शांबर का वध कर दिया। मंगोलोयड जिन्हें 'भोट और किरात ' के नाम से जाना जाता है। हिमाचल में बसने वाली दूसरी प्रजाति बन गई। आर्य और खस हिमाचल में प्रवेश करने वाली तीसरी प्रजाति थी। खसों के सरदार को 'मवाना' कहा जाता था। ये लोग खुद को क्षत्रिय मानते थे। समय के साथ खस समूह 'जनपदों' में बदल गए। वैदिक काल में पहाड़ों पर आक्रमण करने वाले दूसरा आर्य राजा सहस्रार्जुन था। जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने सहस्रार्जुन का वध कर दिया।

(iii) महाभारत काल और चार जनपद - महाभारत काल के समय त्रिगर्त के राजा सुशर्मा ने महाभारत में कौरवों की सहायता की थी। कश्मीर, औदुम्बर और त्रिगर्त के शासक युधिष्ठिर को कर देते थे।  कुल्लू की कुल देवी राक्षसी देवी हडिम्बा का भीम से विवाह हुआ था। महाभारत में चार जनपदों का वर्णन निम्नलिखित है :-

1. औदुम्बर - महाभारत के अनुसार औदुम्बर विश्वामित्र के वंशज थे जो कौशिक गौत्र से संबंधित थे। काँगड़ा, पठानकोट, ज्वालामुखी, गुरदासपुर और होशियारपुर आदि क्षेत्रों में औदुम्बर राज्य के सिक्के मिले हैं। ये लोग शिव की पूजा करते हैं। पाणिनि के 'गणपथ' में भी औदुम्बर जाति का विवरण मिलता है। अदुम्बर वृक्ष की बहुलता के कारण यह जनपद औदुम्बर कहलाया।

2. त्रिगर्त - त्रिगर्त जनपद की स्थापना 8वीं BC से 5वीं BC के बीच सुशर्म चंद्र द्वारा की गई। सुशर्म चंद्र ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सहायता की थी। त्रिगर्त रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के बीच का भाग था। सुशर्म चंद्र ने काँगड़ा किला बनाया और नागरकोट को अपनी राजधानी बनाया।

3. कुल्लूत - कुल्लूत राज्य व्यास नदी के ऊपर का इलाका था। इसकी प्राचीन राजधानी 'नग्गर' थी। कुल्लू घाटी में राजा विर्यास के नाम से 100 ई. का सबसे पुराना सिक्का मिलता है। इस पर 'प्राकृत' और 'खरोष्ठी' भाषा में लिखा गया है। कुल्लू रियासत की स्थापना 'प्रयाग' (इलाहाबाद) से आये 'विहंगमणि पाल' ने की थी।

4. कुलिंद - महाभारत के अनुसार कुलिंद पर अर्जुन ने विजय प्राप्त की थी। कुलिंद रियासत व्यास, सतलुज और यमुना के बीच की भूमि थी जिसमें सिरमौर, शिमला, अम्बाला और सहारनपुर के क्षेत्र शामिल थे।

वर्तमान समय के 'कुनैत' या 'कनैत' का संबंध कुलिंद से माना जाता है। यमुना नदी का पौराणिक नाम 'कालिंदी' है और इसके साथ - साथ पर पड़ने वाले क्षेत्र को कुलिंद कहा गया है।

(iv) सिकंदर का आक्रमण - सिकंदर ने 326 BC के समय भारत पर आक्रमण किया और व्यास नदी तक पहुंच गया। सिकंदर का सेनापति 'कोइनोस' था। सिकंदर ने व्यास नदी के तट पर अपने भारत अभियान की निशानी के तौर पर बाहर स्तूपों का निर्माण करवाया था। जो अब नष्ट हो चुके हैं।

(v) मौर्य काल - सिकंदर के आक्रमण के पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत में एक विशाल राज्य की स्थापना की। कुलिंद राज्य को मौर्य काल में शिरमौर्य कहा गया क्योंकि कुलिंद राज्य मौर्य साम्राज्य के शीर्ष पर स्थित था। कालांतर में यह शिरमौर्य सिरमौर बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य के पोते अशोक ने मझिम्म और 4 बौद्ध भिक्षुओं को हिमालय में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा।

(vi) मौर्योत्तर काल - मौर्यों के पतन के बाद शुंग वंश पहाड़ी गणराज्यों को अपने अधीन नहीं रख पाए और वे स्वतंत्र हो गए। ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के आसपास शकों का आक्रमण शुरू हुआ। शकों के बाद कुषाणों के सबसे प्रमुख राजा कनिष्क के शासनकाल में पहाड़ी राज्यों ने समर्पण कर दिया और कनिष्क की अधीनता स्वीकार कर ली।

(vii) गुप्तकाल - गुप्त साम्राज्य की नींव चंद्रगुप्त-प्रथम के दादा श्री गुप्त ने रखी। समुद्रगुप्त (भारत का नेपोलियन) इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था।

(viii) हूण - गुप्तवंश की समाप्ति का मुख्य कारण हूणों का आक्रमण था। हूणों का प्रमुख राजा 'तोरमाण' और उसका पुत्र 'मिहिरकुल' था। गुज्जर और गद्दी स्वयं को हूणों के वंशज मानते हैं।

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