(i) हस्तकला -
कुल्लू - कुल्लू की शालें प्रसिद्ध हैं टो बुशहर की टोपियाँ बहुत लोकप्रिय हैं | काष्ठ, पाषाण तथा धातुकला में भी हिमाचल प्रदेश समृद्ध है | मसरूर मंदिर की पाषाण कला इतनी उत्कृष्ट है कि इसे हिमाचल प्रदेश का अंजता, एलोरा कहा जाता है | धातुकला की उत्कृष्ट मिसाल हाटकोटी, हाटेश्वरी, भीमाकाली की मूर्तियाँ हैं | गोम्पाओं में भी धातुकला की मिसालें देखी जा सकती है | काष्ठकला के लिए किन्नौर और लाहौल-स्पीति के गोम्पा, चम्बा, काँगड़ा, मण्डी के मंदिर प्रसिद्ध हैं | काष्ठकला के लिए भरमौर का लक्षणा देवी और शक्ति देवी मंदिर, निर्मण्ड का महादेव मंदिर, लाहौल का मृकुला देवी मंदिर, मण्डी का मगरू महादेव मंदिर प्रसिद्ध हैं |
(ii) वास्तुकला -
वास्तुकला की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के मंदिरों को छतों के आकार के आधार पर शिखर, समतल-छत, गुंबदाकार, बंद छत, स्तूपाकार और पैगोड़ा शैली में बाँटा जा सकता है -
1. शिखर शैली - इस शैली के मंदिरों में छत के ऊपर का हिस्सा पर्वत चोटीनुमा होता है | काँगड़ा का मसरूर रॉक कट मंदिर इस शैली से बना है |
2. समतल शैली - समतल छत शैली में समतल छत होने के साथ-साथ इनकी दीवारों पर काँगड़ा शैली के चित्रों को चित्रित किया गया है | सुजानपुर टीहरा का नर्बदेश्वर मंदिर, नूरपुर का ब्रज स्वामी मंदिर, स्पीति के ताबों, बौद्ध मठ भी इसी शैली के हैं | समतल शैली में मुख्यत: राम और कृष्ण के मंदिर हैं |
3. गुंबदाकार शैली - काँगड़ा का ब्रजेश्वरी देवी, ज्वालाजी, चिंतपूर्णी मंदिर, बिलासपुर का नैनादेवी मंदिर, सिरमौर का बालासुंदरी मंदिर इस शैली से संबंधित हैं | इस प्रकार की शैली से बने मंदिरों पर मुगल और सिक्ख शैली का प्रभाव है |
4. स्तूपाकार शैली - जुब्बल के हाटकोटी के हाटेश्वरी और शिव मंदिर को इसी शैली में रखा जा सकता है | इस शैली के अधिकतर मंदिर जुब्बल क्षेत्र में हैं |
5. बंद-छत शैली - यह हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी शैली है | भरमौर का लक्षणा देवी मंदिर और छतराड़ी के शक्ति देवी के मंदिरों के नाम इस शैली में लिए जा सकते हैं |
6. पैगोड़ा शैली - कुल्लू के हिडिम्बा देवी (मनाली), मण्डी का पराशर मंदिर इस शैली से बने हुए हैं।