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Himachal Pradesh | हिमाचल का इतिहास : आंदोलन

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हिमाचल प्रदेश | हिमाचल का इतिहास : आंदोलन

(i) 1857 ई. से पूर्व की घटना - लाहौर संधि से पहाड़ी राजाओं का अंग्रेजों से मोह भंग होने लगा क्योंकि अंग्रेजों ने उन्हें उनकी पुरानी जागीरें नहीं दी। दूसरे ब्रिटिश-सिख युद्ध (1848 ई.) में काँगड़ा पहाड़ी रियासतों ने सिखों का अंग्रेजों के विरुद्ध साथ दिया। नूरपुर, काँगड़ा, जसवाँ और दतारपुर की पहाड़ी रियासतों ने अंग्रेजों के खिलाफ 1848 ई. में विद्रोह किया जिसे कमिश्नर लारेंस ने दबा दिया। सभी को गिरफ्तार कर अल्मोड़ा ले जाया गया जहां उनकी मृत्यु हो गई। नूरपुर के बजीर राम सिंह पठानिया अंग्रेजों के लिए टेढ़ी खीर साबित हुए। उन्हें शाहपुर के पास "डाले की धार" में अंग्रेजों ने हराया। उन्हें एक ब्राह्मण पहाड़चंद ने धोखा दिया था। बजीर राम सिंह पठानिया को सिंगापूर भेज दिया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।

(ii) 1857 ई. की क्रांति - हिमाचल प्रदेश में कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सर्वप्रथम कसौली सैनिक छावनी में भड़की। शिमला हिल्स के कमाण्डर-इन-चीफ 1857 ई. के विद्रोह के समय जनरल एनसन और शिमला के डिप्टी कमिश्नर लार्ड विलियम हे थे। शिमला के जतोग में स्थित नसीरी बटालियन (गोरखा रेजिमेंट) के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। कसौली में 80 सैनिकों (कसौली गार्ड के) ने विद्रोह कर सरकारी खजाने को लूटा। इन सैनिकों का नेतृत्व सूबेदार भीम सिंह कर रहे थे। कसौली की सैनिक टुकड़ी खजाने के साथ जतोग में नसारी बटालियन में आ मिली।

1. पहाड़ी राज्यों द्वारा अंग्रेजों की सहायता करना - क्योंथल के राजा ने शिमला के महल और जुन्गा में अंग्रेजों को शरण दी। कोटी और बल्सन ने भी अंग्रेजों की सहायता की। बिलासपुर राज्य के सैनिकों ने बालूगंज, सिरमौर राज्य के सैनिकों ने बड़ा बाजार में अंग्रेजों की सहायता की। भागल के मियां जय सिंह, धामी, भज्जी और जुब्बल के राजाओं ने भी अंग्रेजों का साथ दिया। चम्बा के राजा श्री सिंह ने मियां अवतार सिंह के नेतृत्व में डलहौजी में अपनी सेना अंग्रेजों की सहायता के लिए भेजी।

2. क्रांतिकारी - 1857 ई. के विद्रोह के समय सबाथु के 'राम प्रसाद बैरागी' को गिरफ्तार कर अंबाला भेज दिया गया जहाँ उन्हें मृत्यु दंड दिया गया। जून, 1857 ई. में कुल्लू में प्रताप सिंह के नेतृत्व में विद्रोह हुआ जिसमें सिराज क्षेत्रों के क्षेत्र के नेगी ने सहायता की। प्रताप सिंह और उसके साथी वीर सिंह को गिरफ्तार कर धर्मशाला में 3 अगस्त, 1857 ई. को फांसी दे दी गई।

3. बुशहर रियासत का रुख - सिब्बा के राजा राम सिंह, नदौन के राजा जोधबीर चंद और मण्डी रियासत के बजीर घसौण ने अंग्रेजों की मदद की। बुशहर रियासत हिमाचल प्रदेश की एकमात्र रियासत थी जिसमें 1857 ई. की क्रांति ने अंग्रेजों का साथ नहीं दिया और न ही किसी प्रकार की सहायता की। सूबेदार भीम सिंह ने कैद से भागकर बुशहर के राजा शमशेर सिंह के यहाँ शरण ली थी। शिमला के डिप्टी कमिश्नर विलियम हे ने बुशहर के राजा के खिलाफ कार्यवाही करना चाहते थे परन्तु हिन्दुस्तान-तिब्बत सड़क के निर्माण की वजह से और सैनिकों की कमी की वजह से राजा के विरुद्ध कोई कार्यवाही नही हो सकी।

4.1857 ई. की क्रांति को अंग्रेजों ने पहाड़ी शासकों की सहायता से दबा दिया। इसमें विलियम हे ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों ने गोरखों और राजपूत सैनिकों में फूट डलवाकर सभी सड़कों की नाकेबंदी करवा दी। सूबेदार भीम सिंह सहित सभी विद्रोही सैनिकों को कैद कर लिया गया। सूबेदार भीम सिंह भागकर रामपुर चला गया परन्तु जब उसे विद्रोह की असफलता का पता चला तो उसने आत्महत्या कर ली।

(iii) दिल्ली दरबार - 1877 ई. में लार्ड लिटन के कार्यकाल में दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। इसमें चम्बा के राजा श्याम सिंह, मंडी के राजा विजाई सेन और बिलासपुर के राजा हीराचंद ने भाग लिया। 1911 में दिल्ली को कलकता के स्थान पर भारत की राजधानी बनाया गया। इस अवसर पर दिल्ली में दरबार लगाया गया। इस दरबार में सिरमौर के राजा अमर प्रकाश, बिलासपुर के राजा अमर चंद, क्योंथल के राजा विजाई सेन , सुकेत के राजा भीम सेन, चम्बा के राजा भूरी सिंह, भागत के राजा दीप सिंह और जुब्बल के राणा भगत चंद ने भाग लिया।

(iv) मण्डी षडयंत्र - लाला हरदयाल ने सैनफ्रांसिस्को (यू.एस.ए) में गदर पार्टी की स्थापना की। मण्डी षडयंत्र वर्ष 1914 से 1915 में 'गदर पार्टी' के नेतृत्व में हुआ। गदर पार्टी के कुछ सदस्य अमेरिका से आकर मण्डी और सुकेत में कार्यकर्ता भर्ती करने के लिए फ़ैल गए। मियां जवाहर सिंह और मण्डी की रानी खैर गढ़ी इनके प्रभाव में आ गए। दिसम्बर, 1914 और जनवरी, 1915 को इन्होनें मण्डी के सुपरीटेंडेंट और वजीर की हत्या, कोषागार को लुटने और ब्यासपुल को उड़ाने की योजना बनाई। नागचला डकैती के अलावा गदर पार्टी के सदस्य किसी और योजना में सफल नहीं हो सके। रानी खैर गढ़ी को देश निकाला दे दिया गया। भाई हिरदा राम को लाहौर षडयंत्र केस में फांसी दे दी गई। सुरजन सिंह और निधान सिंह चुग्घा को नागचला डकैती के झूठे मुकद्दमे में फांसी दे दी गई। मण्डी के हरदेव गदर पार्टी के सदस्य बन गए और बाद में स्वामी कृष्णानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए।

1. पहाड़ी गाँधी बाबा कांशीराम - 1920 के दशक में शिमला में अनेक राष्ट्रीय नेताओं का आगमन हुआ। महात्मा गांधी पहली बार 1921 ई. में शिमला में आए और शांति कुटीर समर हिल में रुके। नेहरु, पटेल आदि नेता अक्सर यहाँ आते रहे। वर्ष 1927 ई. में सुजानपुर टीहरा के 'ताल' में एक सम्मेलन हुआ जिसमें पुलिस ने लोगों की निर्मम पिटाई की। ठाकुर हजारा सिंह बाबा कांशीराम रामचतर सिंह को भी इस सम्मेलन में चोटें लगीं। बाबा कांशीराम ने इस सम्मेलन में शपथ ली कि वह आजादी तक काले कपड़े पहनेंगे। बाबा कांशीराम को 'पहाड़ी गांधी' का खिताब 1937 ई. में गदड़ीवाला जनसभा में पं.जवाहर लाल नेहरु ने दिया। उन्हें सरोजनी नायडू ने 'पहाड़ी बुलबुल' का खिताब दिया।

(v) प्रजामण्डल -

1. आल इंडिया स्टेट पीपल कान्फ्रेंस (AISPC)- इसकी स्थापना 1927 ई. में बम्बईमें हुई। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रजामण्डलों के बीच समन्वय स्थापित करना था। सर हारकोर्ट बटलर इसके प्रणेता थे।

2. बिलापुर राज्य प्रजामण्डल (BRPM) - दौलत राम सांख्यान, नरोत्तम दत्त शास्त्री, देवीराम उपाध्याय ने ऑल इण्डिया स्टेट पीपल कॉन्फ्रेंस ( AISPC) के 1945 ई. के उदयपुर अधिवेशन में भाग लेने के बाद 1945 ई. में बिलासपुर राज्य प्रजामण्डल की स्थापना की।

3. चम्बा - 'चम्बा पीपल डिफेंस लीग'की 1932 ई.में लाहौर में स्थापना की गई। 'चम्बा सेवक संघ' की 1936 ई. में चम्बा शहर में स्थापना की गई।

4. हिमालयन रियासती प्रजामण्डल (HRPM) - इसकी स्थापना 1938 ई. में की गई। पं. पद्म देव इसके सचिव थे। इसकी स्थापना शिमला में हुई।

5. HHSRC - मण्डी में 8 से 10 मार्च, 1946 ई. को 48 पहाड़ी राज्यों का (शिमला से लेकर टिहरी गढ़वाल तक) हिमालयन हिल स्टेट रीजनल काउंसिल (HHSRC) का अधिवेशन हुआ। प्रजामण्डलों को 1946 ई. के AISPC (ऑल इंडिया स्टेट पीपल कॉफ्रेंस) के उदयपुर अधिवेशन में HHSRC (हिमालयन हिल स्टेट रीजनल काउंसिल) में जोड़ा गया। मण्डी के स्वामी पूर्णनन्द इसके अध्यक्ष, पं. पद्म देव (बुशहर) इसके महासचिव और पं. शिवानंद रमौल इसके सह सचिव बने। HHSRC का मुख्यालय शिमला में था। 31 अगस्त से 1 सितम्बर, 1946 को HHSRC का सम्मेलन नाहन में हुआ। जिसमें पुन: चुनाव की मांग उठी। 1 मार्च, 1947 को AISPC के ऑफिस सचिव श्री एच. एल. मशूरकर के पर्यवेक्षण में चुनाव हुए। डॉ. वाई. एस. परमार को HHSRC का अध्यक्ष और पं. पद्म देव को महासचिव चुना गया। HHSRC के कुछ सदस्यों में मतभेद के बाद शिमला और पंजाब हिल स्टेट के 6 सदस्यों ने हिमालयन हिल्स स्टेट सब रीजनल काउंसिल (HHSSRC)का गठन किया जो कि HHSRC की समानांतर न होकर उसका भाग थी। HHSSRC के अध्यक्ष वाई. एस. परमार और महासचिव पं. पद्म देव बने।

6. अन्य प्रजामण्डल - 1933 में लाहौर में कुल्लू पीपल लीग का गठन हुआ। वर्ष 1936 में मण्डी प्रजामण्डल की स्थापना हुई। वर्ष 1938 ई. में बाघल प्रजामण्डल का गठन हुआ। वर्ष 1939 में कुनिहार प्रजामण्डल का गठन हुआ। वर्ष 1946 में बलसन रियासती प्रजामण्डल का गठन हुआ। वर्ष 1939 ई. में शिमला हिल स्टेट कॉन्फ्रेंस हुई। सिरमौर प्रजामण्डल की स्थापना 1939 ई. में हुई। धामी रियासती प्रजामण्डल की स्थापना 13 जुलाई, 1939 ई. को हुई। प्रेम प्रचारणी सभाधामी 1937 में हुई। सिरमौर रियासती प्रजामण्डल की स्थापना 1944 ई. में हुई।

(vi) कुछ प्रमुख जन आंदोलन -

1. दूजम आंदोलन (1906)- 1906 ई. में रामपुर बुशहर में दूजम आंदोलन चलाया गया जो कि असहयोग आंदोलन का प्रकार था।

2. कोटगढ़ - कोटगढ़ में सत्यानंद स्टोक्स ने बेगार प्रथा के विरुद्ध आंदोलन किया।

3. भाई दो, ना पाई आंदोलन - 1938 में हिमालयन रियासती प्रजामण्डल ने भाई दो, ना पाई आंदोलन शुरू किया। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन की अभिवृद्धि थी। इसमें ब्रिटिश सेना को न भर्ती के लिए आदमी देना और न युद्ध के लिए पैसों की सहायता देना।

4. झुग्गा आंदोलन - 1883 से 1888 ई. में बिलापुर में राजा अमरचंद के विरोध में झुग्गा आंदोलन हुआ। राजा के अत्याचारों का विरोध करने के लिए गेहड़वी के ब्राह्मण झुग्गियाँ बनाकर रहने लगे और झुग्गों पर इष्ट देवता के झण्डे लगाकर कष्टों को सहते रहे और राजा के गिरफ्तार करने से पहले ही ब्राह्मण झुग्गों में आग लगाकर जल मरे। जनता भड़क गई और अंत में राजा को बेगार प्रथा खत्म कर प्रशासनिक सुधार करने पड़े।

5. धामी गोली कांड - 16 जुलाई, 1939 में धामी गोली कांड हुआ। 13 जुलाई, 1939 ई. को शिमला हिल स्टेट्स हिमालय रियासती प्रजामण्डलके नेता भागमल सौठा की अध्यक्षता में धामी रियासतों के स्वयंसेवक की बैठक हुई। इस बैठक में धामी प्रेम प्रचारिणी सभा पर लगाई गई पाबंदी को हटाने का अनुरोध किया, जिसे धामी के राणा ने मना कर दिया। 16 जुलाई, 1939 में भागमल सौठा के नेतृत्व में लोग धामी के लिए रवाना हुए। भागमल सौठा को घणाहट्टी में गिरफ्तार कर लिया गया। राणा ने हलोग चौक के पास इकटठी जनता पर घबराकर गोली चलाने की आज्ञा दे दी जिसमें 2 व्यक्ति मारे गए व कई घायल हो गए।

6. पझौता आंदोलन - पझौता आंदोलन सिरमौर के पझौता में 1942 ई. को हुआ। यह भारत छोड़ों आंदोलन का भाग था। सिरमौर रियासत के लोगों ने राजा के कर्मचारियों की घूसखोरी व तानाशाही के खिलाफ "पझौता किसान सभा" का गठन किया। आंदोलन के नेता लक्ष्मी सिंह, वैद्य सूरत सिंह, मियाँ चूचूँ, बस्ती राम पहाड़ी थे। सात माह तक किसान नेताओं और आंदोलनकारियों ने पुलिस और सरकारी अधिकारी को पझौता में घुसने नहीं दिया। आंदोलन के दौरान पझौता इलाके में चूचूँ मियाँ के नेतृत्व में किसान सभा का प्रभुत्त्व स्थापित हो गया।

7. कुनिहार संघर्ष - 1920 में कुनिहार के राणा हरदेव के विरुद्ध आंदोलन हुआ। गौरी शकंर और बाबू कांशीराम इसके मुख्य नेता थे। राणा ने कुनिहार प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर दिया। 9 जुलाई, 1939 ई. को राणा ने प्रजामण्डल की मांगें मान लीं।

8. अन्य जन आंदोलन - मण्डी में 1909 में शोभा राम ने राजा के वजीर जीवानंद के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन किया। शोभा राम को गिरफ्तार कर अंडमान भेज दिया गया। रामपुर बुशहर में 1859 में विद्रोह हुआ। सुकेत में 1862 और 1876 ई. में राजा ईश्वर सिंह और बजीर गुलाम कादिर के विरुद्ध आंदोलन हुआ। बिलासपुर में 1883 और 1930 में किसान आंदोलन हुआ। सिरमौर के में राजा शमशेर प्रकाश की भूमि बंदोबस्त व्यवस्था के खिलाफ 1878 ई. में भूमि आंदोलन हुआ। चम्बा के भटियात में बेगार के खिलाफ 1896 में जन आंदोलन हुआ। तब चम्बा का राजा श्याम सिंह था।

(vii) स्वतंत्रता आंदोलन एवं आंदोलनकारी -

1. प्रशासनिक सुधार - मण्डी के राजा ने मण्डी में 1933 ई. में मण्डी विधानसभा परिषद का गठन किया जिसने पंचायती राज अधिनियम पास किया। शिमला पहाड़ी रियासतों में मण्डी पहला राज्य था जिसमें पंचायती राज अधिनियम लागू किए। बिलासपुर, बुशहर और सिरमौर राज्यों ने भी प्राशासनिक सुधार शुरू किए।

2. कांग्रेस का गठन - ए. ओ. ह्युम ने शिमला के रौथनी कैसल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का विचार रखा।

3. राष्ट्रीय नेताओं का आगमन - लाला लाजपत राय 1906 ई. में मण्डी आये। थियोसोफिकल सोसायटी की नेता ऐनी बेसेन्ट1916 ई.में शिमला आई। महात्मा गांधी, मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली, लाल लाजपत राय और मदन मोहन मालवीय ने पहली बार 1921 ई. में शिमला में प्रवास किया। मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना वायसराय लॉर्ड रीडिंग से मिलने शिमला आए। महात्मा गांधी 1921, 1931, 1939, 1945 और 1946 में शिमला आए। महात्मा गांधी 1945 में मनोरविला(राजकुमारी अमृत कौर का निवास) और 1946 में चैडविक समर हिल में रुके।

4. आंदोलनकारी - ऋषिकेश लट्ठ ने ऊना में 1915 ई. में क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत की। हमीरपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार यशपाल 1918 ई. में स्वाधीनता संग्राम में कूदे। यशपाल को 1932 ई. में उम्र कैद की सजा हुई। वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के चीफ कमांडर थे। इंडियन नेशनल आर्मी के मेजर मैहर दास को 'सरदार-ए-जंग'कैप्टन बक्शी प्रताप सिंह को 'तगमा-ए-शत्रुनाश' और सरकाघाट के हरी सिंह को 'शेर-ए-हिन्द' की उपाधि दी गई। धर्मशाला के 2 गोरखा भाइयों दुर्गामल और दल बहादुर थापा को दिल्ली में फांसी दे दी गई। सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाते हुए 1930 में बाबा लछमन दास और सत्य प्रकाश "बागी" को ऊना में गिरफ्तार कर लिया गया।

5. 1920 के दशक की घटनाएँ - 1920 में हिमाचल में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ। शिमला में कांग्रेस के प्रथम प्रतिनिधि मंडल का गठन 1921 ई. में गठन किया गया। देसी रियासतों के शासकों ने "चेम्बर ऑफ़ प्रिन्सेज"(नरेन्द्र मंडल) का 1921 में गठन किया। दिसम्बर, 1921 में इंग्लैड के युवराज "प्रिंस ऑफ़ वेल्स" के शिमला आगमन का विरोध हुआ। लाला लाजपत राय को 1922 में लाहौर से लाकर धर्मशाला जेल में बंद किया गया। वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने 1925 ई. में शिमला में "सेन्ट्रल कौन्सिल चेम्बर" (वर्तमान विधानसभा) का उद्घाटन किया। शिमला और काँगड़ा में 1928 ई. में साइमन कमीशन का भारत आगमन पर विरोध किया गया।

6. गाँधी-इरविन समझौता - 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन शिमला, धर्मशाला, कुल्लू, ऊना आदि स्थानों पर शुरू हुआ। महात्मा गाँधी, खान अब्दुल गफ्फार खान, मदन मोहन मालवीय और डॉ. अंसारी के साथ दूसरी बार शिमला आए और "गांधी-इरविन समझौता" हुआ। 5 मार्च, 1931 को गांधी-इरविन समझौता शिमला में हुआ।

7. भारत छोड़ो आंदोलन - 9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ। शिमला, काँगड़ा और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू हुआ। शिमला से राजकुमारी अमृत कौर 'भारत छोड़ो आंदोलन' का संचालन करती रही तथा गांधी जी के जेल में बंद होने पर उनकी पत्रिका 'हरिजन'का सम्पादन करती रही। इस आंदोलन के दौरान शिमला में भागमल सौंठा, पंडित हरिराम, चौधरी दीवानचंद आदि नेता गिरफ्तार किये गए।

8. वेवल सम्मेलन - 14 मई, 1945 को पार्लियामेंट में "वेवल योजना" की घोषणा की गई। वायसराय लॉर्ड वेवल ने भारत के सभी राजनीतिक दलों को 25 जून, 1945 को शिमला में बातचीत के लिए आमंत्रित किया। वेवल सम्मेलन में महात्मा गांधी, जवाहरलाल लाल नेहरु,, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल सहित 21 कांग्रेसी नेता, मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली, शाहबाज खां तथा अकाली दल के मास्टर तारा सिंह ने भाग लिया।

9. स्वाधीन कहलूर दल - बिलासपुर के राजा आनंद चंद ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए तथा बिलासपुर प्रजामण्डल एवं AISPC के खिलाफ 'स्वाधीन कहलूर दल' की स्थापना की। आनंद चंद बिलासपुर को स्वतंत्र रखना चाहते थे। कई दौर की बातचीत के बाद बिलासपुर के राजा भारत में विलय के लिए राजी हुए।

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