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SET-12 | सामान्य हिन्दी 360° | General Hindi 360°

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सामान्य हिन्दी 360° | समुच्चय बोधक | SET-12


समुच्चय बोधक - परिभाषा भेद और उदाहरण

समुच्चय बोधक (Conjuction) : दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले संयोजक शब्द को समुच्चय बोधक कहते हैं। जिन शब्दों की वजह से दो या दो से ज्यादा वाक्य , शब्द , या वाक्यांश जुड़ते हैं उन्हें समुच्चयबोधक कहा जाता है। 

जहाँ पर तब, और, वरना, किन्तु, परन्तु, इसीलिए, बल्कि, ताकि, क्योंकि, या, अथवा, एवं, तथा, अन्यथा आदि शब्द जुड़ते हैं वहाँ पर समुच्चयबोधक होता है। इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक भी कहा जाता है।

कुछ शब्द जब भेद प्रकट करते हैं तब भी शब्दों और वाक्यांशों को जोड़ते हैं। इसे अव्यय का एक भाग माना जाता है इसी वजह से इसे समुच्चयबोधक अव्यय भी कहा जाता है। जैसे-
1. राम ने खाना खाया और सो गया।
2. उसने बहुत समझाया लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी।
3. अगर तुम बुलाते तो मैं जरुर आता।
4. श्रुति और गुंजन पढ़ रहे हैं।
5. सीता ने बहुत मेहनत की फिर भी सफल नहीं हुई।
6. मुझे टेपरिकार्डर या घड़ी चाहिए।
7. राम और श्याम आपस में बातें कर रहे हैं।
8. क्या हुआ वह धनवान है लेकिन कंजूस है।

उदाहरण व्याख्या सहित
मोहन और सोहन एक ही शाला में पढ़ते हैं।
यहाँ और शब्द "मोहन" तथा "सोहन" को आपस में जोड़ता है इसलिए यह संयोजक है। 'मोहन या सोहन में से कोई एक ही कक्षा कप्तान बनेगा।'

समुच्चय बोधक के भेद :-
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक

1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जो पद या अव्यय मुख्य वाक्यों को जोड़ते हैं उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। 

जहाँ पर और, तो आते हैं वहाँ पर समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे-
सुनन्दा खड़ी थी और अलका बैठी थी।
ऋतेश गायेगा तो ऋतु तबला बजाएगी।

समानाधिकरण समुच्चयबोधक के उपभेद
1. संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
2. विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
3. विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
4. विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
5. परिणामदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
6. वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक

1. संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक : इनसे दो या अधिक वाक्यों को आपस में जोड़ा जाता है। जिन शब्दों से शब्द, वाक्य और वाक्यांश परस्पर जुड़ते हैं उसे संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जो समुच्चयबोधक अव्यय दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को इकट्ठा करते हैं उन्हें संयोजक समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं।

जहाँ पर भी, व,और, तथा, एवं आते हैं वहाँ पर संयोजक समुच्चयबोधक अव्यय होते हैं। जो अव्यय शब्द, वाक्यों, वाक्यांशों में जोड़ने के अर्थ में आते हैं।
जैसे :
राम और सीता पाठशाला जा रहे हैं।
रवि , गोविन्द और दास एक ही कक्षा में पढ़ते हैं।
राम और मोहन दोनों मित्र हैं।
सेब तथा नारंगी फल है ।
राम, लक्ष्मण और सीता वन में गये।
महापुरुष एवं गुरुजन सभी पूजनीय है।
बिल्ली के पंजे होते हैं और उनमें नख होते हैं।

2. विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जिन शब्दों से शब्दों, वाक्यों, वाक्यांशों और उपवाक्यों में परस्पर विभाजन प्रकट करते हैं उन्हें विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जो अव्यय शब्द शब्द भेद बताते हुए भी वाक्यों को जोड़ते हैं उसे विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जहाँ पर ताकि, या-या, चाहे-चाहे, क्या-क्या, न-न, न कि, नहीं तो, परन्तु, तो, या, चाहे, अथवा, अन्यथा, वा, मगर आते हैं वहाँ पर विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे -
मेहनत से पढाई करो ताकि परीक्षा में सफल हो सको।
राम तो आया, परन्तु श्याम नहीं।
तुम चलोगे तो मैं चलूँगा।
क्या स्त्री क्या पुरुष सभी के मन में आनन्द छा रहा था।

3. विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जिन अव्यय शब्दों से विकल्प का पता चलता है उसे विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। 

जहाँ पर या, अथवा, अन्यथा, कि आते हैं वहाँ पर विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे :
तुम काम कर सकते हो या पढाई।
तुम मेहनत करो अन्यथा असफल हो जाओगे।
मैं जाउँगा अथवा कैलाश जाएगा।

4. विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जिन शब्दों से दो वाक्यों में से पहले की सीमा को सूचित किया जाता है उसे विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। अथार्त जो शब्द परस्पर दो विरोध करने वाले कथनों और उपवाक्यों को जोड़ते है उन्हें विरोधसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जिन अव्यय शब्दों से विरोध का पता चले उसे विरोधवाचक समुच्चयबोधक समानाधिकरण कहते हैं। जहाँ पर वरन, पर, परन्तु, किन्तु, मगर, बल्कि, लेकिन आते हैं वहाँ पर विरोधवाचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता।
जैसे :
श्याम ने उसे रोका था पर वह नहीं रुका।
सोहन पाठशाला गया था लेकिन पहुँचा नहीं था।
झूठ सच को भगवान जाने पर मेरे मन में एक बात आई है।

5. परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जो शब्द परस्पर दो उपवाक्यों को जोडकर परिणाम देशाते हैं उन्हें परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। अथार्त जिन अव्यय शब्दों से परिणाम का पता चले उसे परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जहाँ पर इसी लिए, सो, इस कारण, अत:, अतएव, फलत:, परिणाम स्वरूप, इसलिए, फलस्वरूप, अन्यथा, आते हैं वहाँ पर परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जैसे :
तुम मेरी सहायता करोगे , इसी लिए मैं आपके पास आया हूँ।
मैं अंग्रेजी में दुर्बल हूँ , अत: आप मेरी सहायता करें।
अब रात होने लगी है इसलिए दोनों अपनी -अपनी जगह से उठे।

6. वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जिन अव्यय शब्दों से अपने द्वारा जुड़ने वाले और एक को त्यागने का पता चले उसे वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर अथवा , या ,न आते हैं वहाँ पर वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे-
जति अथवा मति ने गेंद मारी है।
न तुमने , न तुम्हारे भाई ने मेरी सहायता की।

2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक : जिन शब्दों से किसी वाक्य के प्रधान से आश्रित उपवाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भेद :
1. कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
2. संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
3. उद्देश्यसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
4. स्वरूपसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक

1.  कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक : जिन शब्दों से प्रारम्भ होने वाले वाक्य पहले वाक्य का समर्थन करते हैं उसे करणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। अर्थात जिन शब्दों से परस्पर जुड़े दो उपवाक्यों के कार्य का कारण स्पष्ट होता है उसे कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जिन अव्यय शब्दों से कारण का बोध होता है उसे कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर क्योंकि, जोकि, इसलिए कि, इस कारण, इस लिए, चूँकि, ताकि, कि आते हैं वहाँ पर कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है। जैसे -
तुम पर कोई भरोसा नहीं करता क्योंकि तुम झूठ बोलते हो।
वह मुझे पसंद है इस लिए कि वह सुंदर है।
इस नाटक का अनुवाद मेरा काम नहीं था क्योंकि मैं संस्कृत नहीं जानता।

2. संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक : जिन शब्दों से पूर्ण वाक्य की घटना से उत्तर वाक्य की घटना का संकेत मिले उसे संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। अथार्त जिन शब्दों से दो योजक दो उपवाक्यों को जोड़ते हैं उन्हें संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जिन अव्यय शब्दों से संकेत के भाव का पता चले उसे संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर यदि, तो, तथापि, जा, यद्पि, परन्तु आते हैं वहाँ पर संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे :
कुछ बनना है तो स्कूल जाओ।
अगर उसे काम नहीं होगा तथापि वह आ जाएगा।
जो मैंने हरिश्चन्द्र को तेजोभ्रष्ट न किये तो मेरा नाम विश्वामित्र नहीं।

3. उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक : जिन शब्दों से दो उपवाक्यों को जोडकर उनका उद्देश्य स्पष्ट किया जाता है उसे उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जिन अव्यय शब्दों से उद्देश्य का पता चले उसे उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर ताकि, कि, जो, इसलिए कि, जिससे आते हैं वहाँ पर उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे :
वह मेरे पास आया था ताकि सहायता मांग सके।
श्रेष्ठ कार्य करो जिससे माँ-बाप गर्व कर सकें।
मछुआरा मछली पकड़ने के लिए बहुत मेहनत करता है ताकि उसकी मछली का आच्छा दाम मिले।

4. स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक : 
जिन शब्दों से मुख्य उपवाक्य का अर्थ स्पष्ट होता है उसे स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

जिन अव्यय शब्दों से स्पष्टीकरण आये उसे स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहाँ पर जैसे, यानी, कि, अथार्त, मानो आते हैं वहाँ पर स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे :
वह इस तरह डर रहा है जैसे उसने ही चोरी की हो।
श्री शुकदेव मुनि बोले की महाराज अब आगे की कथा सुनाएँ।

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