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अलंकार की पहचान कैसे करें?

अलंकार पहचानना थोड़ा अभ्यास और कुछ आसान ट्रिक्स से बहुत आसान हो जाता है! यहाँ कुछ मुख्य अलंकारों को पहचानने की सरल तकनीकें दी गई हैं:
शब्दालंकार (जहाँ शब्दों के कारण चमत्कार होता है):
 1. अनुप्रास अलंकार: जब किसी व्यंजन वर्ण की आवृत्ति एक ही पंक्ति में बार-बार हो, तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
   ट्रिक: एक ही अक्षर को बार-बार खोजें।
   उदाहरण: "कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाई।" (यहाँ 'क' वर्ण की आवृत्ति है)

 2. यमक अलंकार: जब एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और हर बार उसका अर्थ अलग-अलग हो, तो यमक अलंकार होता है।
   ट्रिक: एक जैसे दिखने वाले शब्दों को ढूंढें और देखें कि क्या उनके अर्थ अलग हैं।
   उदाहरण: "कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाई। या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय।" (पहले 'कनक' का अर्थ सोना और दूसरे का धतूरा है)

 3. श्लेष अलंकार: जब एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें, तो श्लेष अलंकार होता है।
   ट्रिक: एक ऐसे शब्द को ढूंढें जिसके दो या दो से अधिक मतलब निकल सकते हों जो पंक्ति में फिट बैठते हों।
   उदाहरण: "पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।" (यहाँ 'पानी' के तीन अर्थ हैं - मोती के लिए चमक, मनुष्य के लिए इज्जत और चूने के लिए जल)

अर्थालंकार (जहाँ अर्थ के कारण चमत्कार होता है):
 1. उपमा अलंकार: जब दो अलग-अलग वस्तुओं या व्यक्तियों में किसी समान गुण के कारण तुलना की जाए, तो उपमा अलंकार होता है। इसमें 'सा', 'सी', 'से', 'जैसे' आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।
   ट्रिक: तुलना करने वाले शब्दों ('सा', 'सी', 'से', 'जैसे') को खोजें।
   उदाहरण: "मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है।"

2. रूपक अलंकार: जब दो वस्तुओं या व्यक्तियों में इतनी समानता दिखाई जाए कि दोनों को एक ही मान लिया जाए, यानी उपमेय और उपमान में कोई अंतर न रहे, तो रूपक अलंकार होता है। इसमें वाचक शब्दों का लोप होता है।
   ट्रिक: तुलना तो हो रही हो, लेकिन 'सा', 'सी', 'से', 'जैसे' जैसे शब्द न हों और दोनों चीजों को एक ही बताया जा रहा हो।
   उदाहरण: "चरण कमल बन्दौ हरि राई।" (यहाँ चरणों को कमल ही मान लिया गया है)

3. उत्प्रेक्षा अलंकार: जब उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाए, तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें 'मानो', 'जानो', 'मनहु', 'जनु' आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।
   ट्रिक: 'मानो', 'जानो', 'मनहु', 'जनु' जैसे शब्दों को खोजें जो संभावना व्यक्त कर रहे हों।
   उदाहरण: "सोहत ओढ़े पीत पट, मनो नीलमनि सैल पर आतप परयौ प्रभात।"

 4. अतिशयोक्ति अलंकार: जब किसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए, तो अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
   ट्रिक: ऐसी बात खोजें जो वास्तविकता से बहुत दूर हो, जिसे सच मानना मुश्किल हो।
   उदाहरण: "हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग, लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग।"

 5. मानवीकरण अलंकार: जब प्रकृति या निर्जीव वस्तुओं में मानवीय भावनाओं या क्रियाओं का आरोपण किया जाए, तो मानवीकरण अलंकार होता है।
   ट्रिक: देखें कि क्या किसी निर्जीव चीज को जीवित प्राणियों की तरह व्यवहार करते हुए दिखाया गया है।
   उदाहरण: "मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।" (यहाँ मेघों को सजे-धजे मेहमान की तरह दिखाया गया है)

अभ्यास है ज़रूरी:
सिर्फ ट्रिक्स याद कर लेने से ही अलंकार पहचानना आसान नहीं होगा। आपको अलग-अलग उदाहरणों को देखकर इन ट्रिक्स को लागू करने का अभ्यास करना होगा। धीरे-धीरे आपकी पहचान और समझ बेहतर होती जाएगी!

 100 अलंकारों के उदाहरण देना एक विस्तृत कार्य होगा, लेकिन मैं कोशिश करूँगा कि आपको प्रत्येक मुख्य अलंकार के कुछ बेहतरीन और विविध उदाहरण प्रस्तुत करूँ, जिससे आपकी समझ और गहरी हो सके।
अनुप्रास अलंकार (व्यंजन वर्ण की आवृत्ति):
 * कलम कलम करती बातें।
 * चारु चन्द्र की चंचल किरणें।
 * मधुर मधुर मनोहर मूर्ति।
 * सरस्वती सहाय सुन्दर साध्वी।
 * रघुपति राघव राजा राम।
 * भगवान भक्तों की भीड़ भारी।
 * जल जीवन है, जल ही कहानी।
 * तरुवर फल नहिं तात भखै।
 * दया दहिनी देखि दुखी जन।
 * पति परता पर पीर न जानी।

यमक अलंकार (शब्दों की आवृति, एक शब्द अनेक अर्थ):
 * कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाई। या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय। (कनक = सोना, धतूरा)
 * काली घटा का घमंड घटा। (घटा = बादल, कम हुआ)
 * कहे कवि बेनी, बेनी ब्याल की चुराई लीन्ही। (बेनी = कवि का नाम, चोटी)
 * जगती जगती की प्यास बुझाई। (जगती = संसार, जागती हुई)
 * गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। (गुरु = शिक्षक, बड़ा)
 * तीर मारि करि हरि हँस्यो, री हरि मारि पिराइ। (हरि = विष्णु, बंदर)
 * सुरभि सुगन्धि में सोई, सुरभि सुन्दर सोई। (सुरभि = सुगंध, गाय)
 * कुल कुल सा बोलत है काहे कोकिल कुल। (कुल कुल = पक्षियों का समूह, वंश)
 * पाती पाती झर गई कि झर गए सब पात। (पाती = पत्ता, संदेश)
 * जो चाहो चटक न घटे, मैलो होय न कोय। छूटे न यह चटकीलो रंग, रँगरेज जतन से धोय। (चटक = चमक, चटकीला रंग)

श्लेष अलंकार (एक शब्द अनेक अर्थ):
 * पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून। (पानी = चमक, इज्जत, जल)
 * मधुबन की छाती देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ। (कलियाँ = फूल की अवस्था, यौवन से पहले की अवस्था)
 * चिर जीवो जोरी जुरे, क्यों न स्नेह गंभीर। को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर। (वृषभानुजा = राधा, वृषभ की बहन; हलधर = बलराम, बैल को धारण करने वाला)
 * रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। (पानी = इज्जत, जल)
 * मंगल को देखि पट देत बार-बार हैं। (पट = वस्त्र, दरवाजा)
 * जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो करे, बढ़े अँधेरो होय। (बारे = जलाने पर, बचपन में; बढ़े = बुझने पर, बड़े होने पर)
 * सुवर्ण को खोजत फिरैं कवि, व्यभिचारी, चोर। (सुवर्ण = अच्छा वर्ण, सोना, सुंदर स्त्री)
 * एक ही राग अलापता है। (राग = प्रेम, संगीत की धुन)
 * नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोय। जेतो नीचो है चलै तेतो ऊँचो होय। (नीचो = गहरा, विनम्र; ऊँचो = ऊपर, महान)
 * सारंग लै सारंग चलै, सारंग पुग्यो आय। सारंग सारंग कहै, सारंग मुख सिसाय। (सारंग के अनेक अर्थ - बादल, हिरण, वस्त्र, दीपक, स्त्री आदि)

उपमा अलंकार (तुलना):
 * मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है।
 * सागर-सा गहरा हृदय हो।
 * फूल-सी कोमल बच्ची।
 * बिजली-सी चंचल चाल।
 * बर्फ-सी ठंडी आहें।
 * तलवार-सी तीखी बातें।
 * सिंह-सा गर्जन उसका।
 * मोती-से आँसू ढलके।
 * कमल-से नयन उसके।
 * शहद-सा मीठा स्वर।

रूपक अलंकार (अभेद आरोप):
 * चरण कमल बन्दौ हरि राई।
 * मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों।
 * बीती विभावरी जाग री, अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी।
 * यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
 * मन सागर, लहरें उसकी।
 * विद्या धन अनमोल है।
 * संसार सागर है, तरना कठिन है।
 * पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
 * क्रोध अग्नि प्रचंड है।
 * भव सागर तरने को नाव बनाओ।

उत्प्रेक्षा अलंकार (संभावना):
 * सोहत ओढ़े पीत पट, मनो नीलमनि सैल पर आतप परयौ प्रभात।
 * मुख मानो चन्द्रमा है।
 * जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े।
 * उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
 * सिर फट गया उसका मानो अरुण रंग का घड़ा हो।
 * ले चला साथ मैं तुझे कनक ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।
 * कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।
 * फूले कास सकल महि छाई। जनु वर्षा ऋतु प्रकट बुढ़ाई।
 * ध्वजा पताका तोरण सजी। मानो पुरी अमरावती बाजी।
 * सखी सोहत गोपाल के उर गुंजा की माल। बाहर लसत मनो पिए दावानल की ज्वाल।

अतिशयोक्ति अलंकार (बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन):
 * हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग, लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग।
 * देख लो साकेत नगरी है यही, स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
 * आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।
 * बूंद अघात सहैं गिरि कैसे, खल के वचन संत सह जैसे।
 * सागर के उर पर नाचा करती हैं लहरें मधुर गान।
 * रक्त की नदियाँ बहीं।
 * आँखों से झरते आंसू मानो तारे हों।
 * पर्वत उड़ गए।
 * बात का बतंगड़ बनाना।
 * सरसों के खेत ऐसे लग रहे हैं मानो धरती पीली चादर ओढ़े हो।

मानवीकरण अलंकार (मानवीय गुण):
 * मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।
 * उषा सुनहले तीर बरसाती जय लक्ष्मी-सी उदित हुई।
 * फूल हँसे कलियाँ मुसकाईं।
 * नदियाँ गाती हैं।
 * तारे आसमान में आँखें मिचका रहे हैं।
 * धरती माता रो रही है।
 * हवा धीरे-धीरे बातें कर रही थी।
 * सुबह ने दरवाजा खोला।
 * शाम उदास बैठी है।
 * पर्वत ने सिर झुकाया।

अन्य महत्वपूर्ण अलंकार (संक्षेप में उदाहरण):
 * विरोधाभास: मीठी लगे कड़वी बातें।
 * विभावना: बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
 * विशेषोक्ति: नयन रहते जल ढरै, प्यास बुझानी जाए।
 * असंगति: हृदय घाव मेरे पीर पराई।
 * अनन्वय: राम-से राम, सिया-सी सिया।
 * पुनरुक्ति प्रकाश: धीरे-धीरे फिर वह चला।
 * प्रश्न अलंकार: क्या तुम जा रहे हो?
 * भ्रांतिमान: रस्सी को साँप समझना।
 * संदेह अलंकार: यह नारी है कि साड़ी है, कि साड़ी ही कि नारी है?
 * उपमेयोपमा: मुख चन्द्रमा के समान और चन्द्रमा मुख के समान सुंदर है।
 * व्यतिरेक: सुवर्ण घट भरी विष की, लसत धतूरे क्यार।
 * अर्थान्तरन्यास: जो बड़े होते हैं, वे छोटी बातें नहीं करते।
 * उल्लेख: तू रूप है, किरण है, सौंदर्य है, सार है।
 * दृष्टांत: जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
 * प्रतिवस्तूपमा: दोनों रोते हैं बुरे दिन आने पर।
 * उदाहरण: जैसे जल में कमल रहता, वैसे ही संत संसार में।
 * परिकर: जिसके यश रूपी चंद्रमा पर कलंक नहीं है, वह राजा श्रेष्ठ है।
 * परिसंख्या: इस घर में केवल तुम और मैं ही हैं।
 * काव्यलिंग: सिद्ध कारण से कार्य का समर्थन करना।
 * तद्गुण: जहाँ एक वस्तु का गुण दूसरी वस्तु में आरोपित किया जाए।
यह सिर्फ एक झलक है। अलंकारों की दुनिया बहुत विस्तृत है और हर अलंकार का अपना विशेष सौंदर्य और महत्व है। उम्मीद है, इन उदाहरणों से आपको अलंकारों को समझने में मदद मिलेगी! अभ्यास करते रहें और काव्य के सौंदर्य का आनंद लेते रहें!

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