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POLS 203 U1

राज्य विधानपरिषद्: संरचना, शक्ति, कार्य और उपयोगिता (15 बिंदु, लगभग 400 शब्द)
राज्य विधानपरिषद्, जिसे विधानमंडल का उच्च सदन भी कहा जाता है, भारत के कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधायिका का हिस्सा है। इसकी संरचना, शक्ति, कार्य और उपयोगिता को निम्नलिखित 15 बिंदुओं में समझा जा सकता है:
संरचना:
 * आकार: विधानपरिषद् का आकार राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं होता, लेकिन किसी भी स्थिति में 40 से कम नहीं हो सकता।
 * निर्वाचन और मनोनयन: इसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों जैसे स्थानीय निकाय, स्नातक निर्वाचन क्षेत्र, शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र और विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। कुछ सदस्यों को राज्यपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से मनोनीत किया जाता है।
 * स्थायी सदन: यह एक स्थायी सदन है, जिसका विघटन नहीं होता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य चुने या मनोनीत किए जाते हैं।
 * सभापति और उपसभापति: विधानपरिषद् अपने सदस्यों में से एक सभापति और एक उपसभापति का चुनाव करती है, जो सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं।
शक्ति और कार्य:
 * विधायी शक्ति: विधानपरिषद् को राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन अंतिम शक्ति विधानसभा के पास होती है।
 * वित्तीय शक्ति पर सीमित नियंत्रण: धन विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। विधानपरिषद् धन विधेयक को अधिकतम 14 दिनों तक रोक सकती है या उसमें संशोधन सुझा सकती है, जिसे मानना या न मानना विधानसभा पर निर्भर करता है।
 * गैर-वित्तीय विधेयकों पर समान शक्ति: साधारण विधेयकों के मामले में, विधानपरिषद् विधानसभा के समान शक्ति रखती है और किसी विधेयक को कुछ समय के लिए रोक सकती है या उसमें संशोधन सुझा सकती है।
 * प्रश्न पूछने और प्रस्ताव पारित करने का अधिकार: सदस्य सरकार से प्रश्न पूछ सकते हैं, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव ला सकते हैं और सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।
उपयोगिता:
 * अनुभवी सदस्यों का मंच: यह अनुभवी और प्रतिष्ठित व्यक्तियों को विधायिका में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है जो प्रत्यक्ष चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते।
 * विचार-विमर्श में गहराई: यह विधेयकों पर अधिक विस्तृत और विचारशील बहस के लिए एक अतिरिक्त मंच प्रदान करता है।
 * विधानसभा पर नियंत्रण: यह विधानसभा द्वारा जल्दबाजी में पारित किए गए कानूनों पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करता है।
 * विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व: विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के माध्यम से यह समाज के विभिन्न वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
 * विशेषज्ञता का लाभ: मनोनीत सदस्य अपने विशिष्ट क्षेत्रों का ज्ञान और अनुभव सदन में लाते हैं।
 * स्थायित्व और निरंतरता: स्थायी सदन होने के कारण यह विधायिका में निरंतरता और स्थिरता बनाए रखता है।
 * द्वितीय राय का महत्व: यह किसी भी कानून पर दूसरी राय प्रदान करके त्रुटियों की संभावना को कम करता है और बेहतर विधान बनाने में सहायक होता है।
हालांकि, इसकी उपयोगिता और आवश्यकता पर समय-समय पर बहस होती रहती है, लेकिन यह द्विसदनीय विधायिका वाले राज्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।





राज्य विधानमंडल: संरचना, शक्ति, कार्य और उपयोगिता (15 बिंदु, लगभग 400 शब्द)
राज्य विधानमंडल, भारत में राज्यों के लिए कानून बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है। इसकी संरचना, शक्ति, कार्य और उपयोगिता इस प्रकार है:
1. संरचना:
 * एक या दो सदन: कुछ राज्यों में केवल एक सदन (विधानसभा) होता है, जबकि कुछ बड़े राज्यों में दो सदन (विधानसभा और विधान परिषद) होते हैं।
 * विधानसभा: यह निचला सदन है, जिसके सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
 * विधान परिषद: यह उच्च सदन है, जिसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों (स्थानीय निकाय, स्नातक, शिक्षक आदि) से चुने जाते हैं और कुछ सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।
2. शक्ति और कार्य:
 * कानून बनाना: राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की प्रमुख शक्ति विधानमंडल के पास है।
 * वित्तीय नियंत्रण: यह राज्य की वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है, बजट पारित करती है और करों को मंजूरी देती है।
 * कार्यपालिका पर नियंत्रण: विधानमंडल प्रश्नों, स्थगन प्रस्तावों और अविश्वास प्रस्तावों के माध्यम से राज्य सरकार (कार्यपालिका) पर नियंत्रण रखती है।
 * संविधान संशोधन में भूमिका: कुछ संवैधानिक संशोधनों के लिए राज्यों के विधानमंडलों का अनुमोदन आवश्यक होता है।
 * चर्चा और बहस: यह सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर चर्चा और बहस के लिए एक मंच प्रदान करता है।
3. उपयोगिता:
 * लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व: यह राज्य की जनता के लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करता है।
 * क्षेत्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति: यह राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार कानून बनाने में मदद करता है।
 * जवाबदेही सुनिश्चित करना: यह सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
 * विशेषज्ञता का लाभ: विधान परिषद में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व होता है, जिससे विधायी प्रक्रिया को लाभ मिलता है।
 * विचार-विमर्श को बढ़ावा: द्विसदनीय विधानमंडल में कानूनों पर दो बार विचार होता है, जिससे त्रुटियों की संभावना कम होती है।
 * संघीय ढांचे को मजबूत करना: यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
 * जनमत को आवाज देना: यह विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समूहों को अपनी राय व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
संक्षेप में, राज्य विधानमंडल राज्य के शासन में एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो कानून बनाकर, वित्तीय नियंत्रण रखकर और कार्यपालिका पर निगरानी रखकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है और राज्य के विकास में योगदान देता है।


U3

भारतीय संसद में कई महत्वपूर्ण समितियां हैं जो सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने, विधायी कार्यों की जांच करने और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन समितियों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां।
स्थायी समितियां (Standing Committees): ये समितियां स्थायी प्रकृति की होती हैं और इनका गठन हर साल या समय-समय पर किया जाता है। इनका कार्य निरंतर चलता रहता है। कुछ महत्वपूर्ण स्थायी समितियां इस प्रकार हैं:
 * वित्तीय समितियां (Financial Committees): ये वित्तीय मामलों पर निगरानी रखती हैं और सरकार के वित्तीय प्रबंधन की जांच करती हैं। इनमें तीन प्रमुख समितियां शामिल हैं:
   * लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee - PAC): यह समिति भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टों की जांच करती है और यह सुनिश्चित करती है कि सरकार द्वारा किया गया खर्च संसद द्वारा स्वीकृत प्रावधानों के अनुसार है।
   * प्राक्कलन समिति (Estimates Committee): यह समिति बजट अनुमानों की जांच करती है और सार्वजनिक खर्च में 'मितव्ययिता' लाने के सुझाव देती है।
   * सार्वजनिक उपक्रम समिति (Committee on Public Undertakings - COPU): यह समिति सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कामकाज, रिपोर्ट और खातों की जांच करती है।
 * विभागीय स्थायी समितियां (Departmentally Related Standing Committees - DRSCs): ये 24 समितियां संसद के प्रत्येक सदन द्वारा नामित सदस्यों से बनी होती हैं। प्रत्येक समिति सरकार के विशिष्ट मंत्रालयों और विभागों के कामकाज, नीतियों और बजट की जांच करती है। ये समितियां विधेयकों पर भी विचार करती हैं और अपने सुझाव देती हैं।
 * अन्य स्थायी समितियां: इनके अलावा भी कई अन्य महत्वपूर्ण स्थायी समितियां हैं जो सदन के दिन-प्रतिदिन के कामकाज और विशिष्ट विषयों से संबंधित हैं, जैसे:
   * कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee): यह सदन के विधायी और अन्य कार्यों के लिए समय का निर्धारण करती है।
   * नियम समिति (Rules Committee): यह सदन की प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों पर विचार करती है और उनमें संशोधन की सिफारिश करती है।
   * अधೀನ विधान संबंधी समिति (Committee on Subordinate Legislation): यह समिति यह देखती है कि प्रत्यायोजित विधायन की शक्ति का उचित प्रयोग हो रहा है या नहीं।
   * सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति (Committee on Government Assurances): यह समिति सरकार द्वारा सदन में दिए गए आश्वासनों के कार्यान्वयन की निगरानी करती है।
   * याचिका समिति (Committee on Petitions): यह समिति जनता द्वारा प्रस्तुत याचिकाओं पर विचार करती है।
   * विशेषाधिकार समिति (Committee of Privileges): यह समिति सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है।
   * महिला सशक्तिकरण समिति (Committee on Empowerment of Women): यह महिलाओं के मुद्दों पर विचार करती है और सुझाव देती है।
   * अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण समिति (Committee on the Welfare of Scheduled Castes and Scheduled Tribes): यह इन समुदायों के कल्याण से संबंधित मामलों की जांच करती है।
तदर्थ समितियां (Ad Hoc Committees): ये समितियां विशिष्ट उद्देश्यों के लिए बनाई जाती हैं और जब वे अपना कार्य पूरा कर लेती हैं तो उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इन्हें दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है:
 * जांच समितियां (Inquiry Committees): ये विशिष्ट मामलों या घटनाओं की जांच के लिए गठित की जाती हैं।
 * सलाहकार समितियां (Advisory Committees): ये विशिष्ट विषयों पर सरकार को सलाह देने के लिए गठित की जाती हैं। विधेयकों पर गठित प्रवर समितियां (Select Committees) और संयुक्त समितियां (Joint Committees) इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
ये संसदीय समितियां कानून बनाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं और विभिन्न नीतिगत मामलों पर गहन विचार-विमर्श का मंच प्रदान करती हैं। इनके माध्यम से संसद अधिक प्रभावी ढंग से अपने कार्यों का निर्वहन कर पाती है।

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