काश वक्त पर हम कदर कर लेते!
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रमेश अपने पड़ोसी दुकानदार से बोला " भाई घर मे पैसों की जरूरत है। मजबूरी आन पड़ी है दुकान बेचना चाहता हूँ। दो दिन मे पूरे पैसे चाहिए। तुम खरीदोगे क्या? " पड़ोसी दुकानदार की आँखों मे लालच आ गया बोला " खरीद लूंगा भाई। लेकिन 20 लाख से ऊपर एक रुपया भी ना दूंगा। " रामेश् मायूस होकर बोला " भाई मार्केट मे ऐसी दुकान 40 लाख से निचे नही मिलेगी। मै मजबूर हूँ। इसलिए तुम तीस लाख दे दो। पड़ोसी दुकानदार बोला " नही भाई मै तो बीस लाख ही दूंगा। देनी है तो दो वरना कोई बात नही। इसके बाद रमेश दुकान को ताला लगा कर चला गया। दो दिन बाद रमेश की दुकान को एक नया मालिक खोल रहा था तब पड़ोसी दुकानदार ने पूछा " कितने मे खरीदी? " नया मालिक बोला " 42 लाख मे। " पड़ोसी दुकानदार बोला " बहुत महंगी खरीद ली? " नया मालिक बोला " मार्केट मे ऐसी दुकान की कीमत 50 लाख चल रही है। वो तो रामेश् मजबूर था इसलिए मुझे 42 लाख मे बेच गया। ये सुनकर पड़ोसी दुकानदार मे अपना सिर पकड़ लिया। अपनी मूर्खता पर पछताने लगा। क्योंकि यही दुकान उसे 30 लाख मे मिल रही थी। कहानी का मोरल :- यही रिश्तों मे होता है। कोई हमारे सामने झुक रहा होता है। गिड़गिड़ा रहा होता है। मगर हम उसे सस्ता समझ लेते है। हम उसे और झुकाने की कोशिश करते है। और तोड़ने की कोशिश करते है। हमारे रवैये से वह छिटक कर दूर चला जाता है। जब हम उसे वापस जिंदगी मे लाने की कोशिश करते है तब तक वह बहुत दूर निकल चुका होता है। उसे और सस्ता करने के चक्कर मे हम उस इंसान खो देते है जो हमारे लिए बहुत जरूरी था। बाद मे पता चलता है एक वक़्त पर हमे जो कौड़ियों के भाव मिल रहा था वो बहुत महंगा था। काश वक्त पर हम कदर कर लेते! यही इस दुनिया का सच है। सबको सस्ता चाहिए। फिर चाहे वह इंसान हो या वस्तु।
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