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SET-20 | सामान्य हिन्दी 360° | General Hindi 360°

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सामान्य हिन्दी 360° | उपसर्ग | SET-20


उपसर्ग - परिभाषा, भेद और उदाहरण

उपसर्ग की परिभाषा : संस्कृत एवं संस्कृत से उत्पन्न भाषाओं में उस अव्यय या शब्द को उपसर्ग (prefix) कहते हैं जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषता उत्पन्न करता है।  उपसर्ग = उपसृज् (त्याग) + घञ्। जैसे - अ , अनु , अप , वि , आदि उपसर्ग है।
या
उपसर्ग = उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) 
इसका अर्थ है- किसी शब्द के समीप आ कर नया शब्द बनाना। जो शब्दांश शब्दों के आदि में जुड़ कर उनके अर्थ में कुछ विशेषता लाते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं।
'हार' शब्द का अर्थ है पराजय। परंतु इसी शब्द के आगे 'प्र' शब्दांश को जोड़ने से नया शब्द बनेगा - 'प्रहार' (प्र + हार) जिसका अर्थ है चोट करना।
इसी तरह 'आ' जोड़ने से आहार (भोजन), 'सम्' जोड़ने से संहार (विनाश) तथा 'वि' जोड़ने से 'विहार' (घूमना) इत्यादि शब्द बन जाएँगे।
उपर्युक्त उदाहरण में 'प्र', 'आ', 'सम्' और 'वि' का अलग से कोई अर्थ नहीं है, 'हार' शब्द के आदि में जुड़ने से उसके अर्थ में इन्होंने परिवर्तन कर दिया है। इसका मतलब हुआ कि ये सभी शब्दांश हैं और ऐसे शब्दांशों को उपसर्ग कहते हैं।
हिन्दी में प्रचलित उपसर्गों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. संस्कृत के उपसर्ग
2. हिन्दी के उपसर्ग
3. उर्दू और फ़ारसी के उपसर्ग, अंग्रेज़ी के उपसर्ग
4. उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय।

संस्कृत के उपसर्ग : संस्कृत में बाइस (22) उपसर्ग हैं। प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आ (आङ्), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत् /उद्, अभि, प्रति, परि तथा उप।

उदाहरण :
अति - (आधिक्य) अतिशय, अतिरेक
अधि - (मुख्य) अधिपति, अध्यक्ष
अधि - (वर) अध्ययन, अध्यापन
अनु - (मागुन) अनुक्रम, अनुताप, अनुज
अनु - (प्रमाणें) अनुकरण, अनुमोदन
अप - (खालीं येणें) अपकर्ष, अपमान
अप - (विरुद्ध होणें) अपकार, अपजय
अपि - (आवरण) अपिधान = अच्छादन
अभि - (अधिक) अभिनंदन, अभिलाप
अभि - (जवळ) अभिमुख, अभिनय
अभि - (पुढें) अभ्युत्थान, अभ्युदय
अव - (खालीं) अवगणना, अवतरण
अव - (अभाव, विरूद्धता) अवकृपा, अवगुण
आ - (पासून, पर्यंत) आकंठ, आजन्म
आ - (किंचीत) आरक्त
आ - (उलट) आगमन, आदान
आ - (पलीकडे) आक्रमण, आकलन
उत् - (वर) उत्कर्ष, उत्तीर्ण, उद्भिज्ज
उप - (जवळ) उपाध्यक्ष, उपदिशा
उप - (गौण) उपग्रह, उपवेद, उपनेत्र
दुर्, दुस् - (वाईट) दुराशा, दुरुक्ति, दुश्चिन्ह, दुष्कृत्य
नि - (अत्यंत) निमग्न, निबंध
नि - (नकार) निकामी, निजोर
निर् - (अभाव) निरंजन, निराषा
निस् (अभाव) निष्फळ, निश्चल, नि:शेष
परा - (उलट) पराजय, पराभव
परि - (पूर्ण) परिपाक, परिपूर्ण (व्याप्त), परिमित, परिश्रम, परिवार
प्र - (आधिक्य) प्रकोप, प्रबल, प्रपिता
प्रति - (उलट) प्रतिकूल, प्रतिच्छाया
प्रति - (एकेक) प्रतिदिन, प्रतिवर्ष, प्रत्येक
वि - (विशेष) विख्यात, विनंती, विवाद
वि - (अभाव) विफल, विधवा, विसंगति
सम् - (चांगले) संस्कृत, संस्कार, संगीत
सम् - (बरोबर) संयम, संयोग, संकीर्ण
सु - (चांगले) सुभाषित, सुकृत, सुग्रास
सु - (सोपें) सुगम, सुकर, स्वल्प
सु - (अधिक) सुबोधित, सुशिक्षित
कुछ शब्दों के पूर्व एक से अधिक उपसर्ग भी लग सकते हैं। जैसे -
प्रति + अप + वाद = प्रत्यपवाद
सम् + आ + लोचन = समालोचन
वि + आ + करण = व्याकरण

हिन्दी के उपसर्ग
1. अ - अभाव, निषेध - अछूता, अथाह, अटल
2. अन - अभाव, निषेध - अनमोल, अनबन, अनपढ़
3. कु- बुरा - कुचाल, कुचैला, कुचक्र
4. दु - कम, बुरा - दुबला, दुलारा, दुधारू
5. नि - कमी - निगोड़ा, निडर, निहत्था, निकम्मा
6. औ - हीन, निषेध - औगुन, औघर, औसर, औसान
7. भर - पूरा -    भरपेट, भरपूर, भरसक, भरमार
8. सु - अच्छा - सुडौल, सुजान, सुघड़, सुफल
9. अध - आधा - अधपका, अधकच्चा, अधमरा, अधकचरा
0. उन - एक कम - उनतीस, उनसठ, उनहत्तर, उंतालीस
1. पर- दूसरा, बाद का - परलोक, परोपकार, परसर्ग, परहित
2. बिन - बिना, निषेध - बिनब्याहा, बिनबादल, बिनपाए, बिनजाने

अरबी-फ़ारसी के उपसर्ग
1. कम - थोड़ा, हीन - कमज़ोर, कमबख़्त, कमअक्ल
2. खुश - अच्छा - खुशनसीब, खुशखबरी, खुशहाल, खुशबू
3. गैर- निषेध - गैरहाज़िर, गैरक़ानूनी, गैरमुल्क, गैर-ज़िम्मेदार
4. ना - अभाव - नापसंद, नासमझ, नाराज़, नालायक
5. ब - और, अनुसार - बनाम, बदौलत, बदस्तूर, बगैर
6. बा - सहित - बाकायदा, बाइज्ज़त, बाअदब, बामौका
7. बद - बुरा - बदमाश, बदनाम, बदक़िस्मत,बदबू
8. बे - बिना - बेईमान, बेइज्ज़त, बेचारा, बेवकूफ़
9. ला - रहित - लापरवाह, लाचार, लावारिस, लाजवाब
0. सर - मुख्य - सरताज, सरदार, सरपंच, सरकार
1. हम - समान, साथवाला - हमदर्दी, हमराह, हमउम्र, हमदम
2. हर - प्रत्येक - हरदिन, हरसाल, हरएक, हरबार

उपसर्ग के अन्य अर्थ : बुरा लक्षण या अपशगुन
वह पदार्थ जो कोई पदार्थ बनाते समय बीच में संयोगवश बन जाता या निकल आता है (बाई प्राडक्ट)। जैसे- 
1. गुड़ बनाते समय जो शीरा निकलता है, वह गुड़ का उपसर्ग है।
2. किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न योगियों की योगसाधना के बीच होने वाले विघ्न को उपसर्ग कहते हैं।
मुनियों पर होने वाले उक्त उपसर्गों के विस्तृत विवरण मिलते हैं। जैन साहित्य में विशेष रूप से इनका उल्लेख रहता है क्योंकि जैन धर्म के अनुसार साधना करते समय उपसर्गो का होना अनिवार्य है और केवल वे ही व्यक्ति अपनी साधना में सफल हो सकते हैं जो उक्त सभी उपसर्गों को अविचलित रहकर झेल लें। हिंदू धर्म कथाओं में भी साधना करने वाले व्यक्तियों को अनेक विघ्नबाधाओं का सामना करना पड़ता है किंतु वहाँ उन्हें उपसर्ग की संज्ञा यदा-कदा ही गई है।

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