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SET-21 | सामान्य हिन्दी 360° | General Hindi 360°

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सामान्य हिन्दी 360° | प्रत्यय | SET-21


प्रत्यय - परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

प्रत्यय : प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ' साथ में, पर बाद में ' और अय का अर्थ होता है ' चलने वाला ', अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।
प्रत्यय की परिभाषा : प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘ प्रति ’ का अर्थ ‘ साथ में , पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘ चलनेवाला ’। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ- शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश ।
अत: जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- 'बड़ा' शब्द में 'आई' प्रत्यय जोड़ कर 'बड़ाई' शब्द बनता है।
या
वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वाला) कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन

प्रत्यय के भेद : प्रत्यय के प्रकार
1. संस्कृत के प्रत्यय
2. हिंदी के प्रत्यय
3. विदेशी भाषा के प्रत्यय

संस्कृत के प्रत्यय :
के दो मुख्य भेद हैं: कृत् और तद्धित ।
कृत्-प्रत्यय : क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।
कृत प्रत्यय के उदाहरण : अक = लेखक , नायक , गायक , पाठक
अक्कड = भुलक्कड , घुमक्कड़ , पियक्कड़
आक = तैराक , लडाक

तद्धित प्रत्यय : संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है । तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं ।
तद्धित प्रत्यय के उदाहरण : 
1. लघु + त = लघुता
2. बड़ा + आई = बड़ाई
3. सुंदर + त = सुंदरता
4. बुढ़ा + प = बुढ़ापा
कृत प्रत्यय के प्रकार :
विकारी कृत्-प्रत्यय : ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं।
अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय : ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते है।
विकारी कृत्-प्रत्यय के भेद : 
1. क्रियार्थक संज्ञा,
2. कतृवाचक संज्ञा,
3. वर्तमानकालिक कृदंत
4. भूतकालिक कृदंत

हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्यय के योग से छह प्रकार के कृदंत शब्द बनाये जाते हैं-
1. कतृवाचक
2. गुणवाचक
3. कर्मवाचक
4. करणवाचक
5. भाववाचक
6. क्रियाद्योदक

कर्तृवाचक : कर्तृवाचक कृत्-प्रत्यय उन्हें कहते हैं, जिनके संयोग से बने शब्दों से क्रिया करनेवाले का ज्ञान होता है । जैसे-वाला, द्वारा, सार, इत्यादि ।
कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-
1. क्रिया के सामान्य रूप के अंतिम अक्षर ‘ ना’ को ‘ने’ करके उसके बाद ‘वाला” प्रत्यय जोड़कर । जैसे-चढ़ना-चढ़नेवाला, गढ़ना-गढ़नेवाला, पढ़ना-पढ़नेवाला, इत्यादि। 
2. ‘ना’ को ‘न’ करके उसके बाद ‘हार’ या ‘सार’ प्रत्यय जोड़कर । जैसे-मिलना-मिलनसार, होना-होनहार, आदि ।
3. धातु के बाद अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओड़ा, कवैया इत्यादि प्रत्यय जोड़कर । जैसे- पी-पियकूड, बढ़-बढ़िया, घट-घटिया, इत्यादि ।

गुणवाचक : गुणवाचक कृदंत शब्दों से किसी विशेष गुण या विशिष्टता का बोध होता है । ये कृदंत, आऊ, आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं ।
जैसे- बिकना-बिकाऊ ।
कर्मवाचक : जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं । ये धातु के अंत में औना, ना और नती प्रत्ययों के योग से बनते हैं । जैसे-खिलौना, बिछौना, ओढ़नी, सुंघनी, इत्यादि ।
करणवाचक : जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं । करणवाचक कृदंत धातुओं के अंत में नी, अन, ना, अ, आनी, औटी, औना इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर बनाये जाते हैं।
जैसे- चलनी, करनी, झाड़न, बेलन, ओढना, ढकना, झाडू. चालू, ढक्कन, इत्यादि ।
भाववाचक : जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत कहते हैं ! क्रिया के अंत में आप, अंत, वट, हट, ई, आई, आव, आन इत्यादि जोड़कर भाववाचक कृदंत संज्ञा-पद बनाये जाते हैं। जैसे-मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा इत्यादि।
क्रियाद्योतक : जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं। मूलधातु के बाद ‘आ’ अथवा, ‘वा’ जोड़कर भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत बनाये जाते हैं। कहीं-कहीं हुआ’ प्रत्यय भी अलग से जोड़ दिया जाता है।
जैसे- खोया, सोया, जिया, डूबता, बहता, चलता, रोता, रोता हुआ, जाता हुआ इत्यादि।

हिंदी के कृत्-प्रत्यय : 
हिंदी में कृत्-प्रत्ययों की संख्या अनगिनत है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- अन, अ, आ, आई, आलू, अक्कड़, आवनी, आड़ी, आक, अंत, आनी, आप, अंकु, आका, आकू, आन, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, आहट, इया, इयल, ई, एरा, ऐया, ऐत, ओडा, आड़े, औता, औती, औना, औनी, औटा, औटी, औवल, ऊ, उक, क, का, की, गी, त, ता, ती, न्ती, न, ना, नी, वन, वाँ, वट, वैया, वाला, सार, हार, हारा, हा, हट, इत्यादि । 
ऊपर बताया जा चुका है कि कृत्-प्रत्ययों के योग से छह प्रकार के कृदंत बनाये जाते हैं। इनके उदाहरण प्रत्यय, धातु (क्रिया) तथा कृदंत-रूप के साथ नीचे दिये जा रहे हैं-

कर्तृवाचक कृदंत :
क्रिया के अंत में आक, वाला, वैया, तृ, उक, अन, अंकू, आऊ, आना, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वैया, सार, हार, हारा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं ।
प्रत्यय ■ धातु ■ कृदंत रूप
आक - तैरना - तैराक
आका - लड़ना - लड़ाका
आड़ी- खेलना- ख़िलाड़ी
वाला- गाना - गानेवाला
आलू - झगड़ना - झगड़ालू
इया - बढ़ - बढ़िया
इयल - सड़ना- सड़ियल
ओड़ - हँसना - हँसोड़
ओड़ा - भागना -भगोड़ा
अक्कड़ -पीना- पियक्कड़
सार - मिलना - मिलनसार
क - पूजा - पूजक
हुआ - पकना - पका हुआ

गुणवाचक कृदन्त :
क्रिया के अंत में आऊ, आलू, इया, इयल, एरा, वन, वैया, सार, इत्यादि प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं:
प्रत्यय ■ क्रिया ■ कृदंत रूप
आऊ - टिकना - टिकाऊ
वन - सुहाना - सुहावन
हरा - सोना - सुनहरा
ला - आगे, पीछे - अगला, पिछला
इया - घटना- घटिया
एरा - बहुत - बहुतेरा
वाहा - हल - हलवाहा

कर्मवाचक कृदंत :
क्रिया के अंत में औना, हुआ, नी, हुई इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से बनते हैं ।
प्रत्यय ■ क्रिया ■ कृदंत रूप
नी - चाटना, सूंघना - चटनी, सुंघनी
औना - बिकना, खेलना - बिकौना, खिलौना
हुआ - पढना, लिखना - पढ़ा हुआ, लिखा हुआ
हुई - सुनना, जागना - सुनी हुईम जगी हुई

करणवाचक कृदंत :
क्रिया के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, ने, नी इत्यादि प्रत्ययों के योग से करणवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं तथा इनसे कर्ता के कार्य करने के साधन का बोध होता है।
प्रत्यय ■ क्रिया ■ कृदंत रूप
आ - झुलना - झुला
ई - रेतना - रेती
ऊ - झाड़ना - झाड़ू
न - झाड़ना - झाड़न
नी - कतरना - कतरनी
आनी - मथना - मथानी
अन - ढकना - ढक्कन

भाववाचक कृदंत :
क्रिया के अंत में अ, आ, आई, आप, आया, आव, वट, हट, आहट, ई, औता, औती, त, ता, ती इत्यादि प्रत्ययों के योग से भाववाचक कृदंत बनाये जाते हैं तथा इनसे क्रिया के व्यापार का बोध होता है ।
प्रत्यय ■ क्रिया ■ कृदंत रूप
अ - दौड़ना -दौड़
आ - घेरना - घेरा
आई - लड़ना- लड़ाई
आप- मिलना- मिलाप
वट - मिलना -मिलावट
हट - झल्लाना - झल्लाहट
ती - बोलना -बोलती
त - बचना -बचत
आस -पीना -प्यास
आहट - घबराना - घबराहट
ई - हँसना- हँसी
एरा - बसना - बसेरा
औता - समझाना - समझौता
औती - मनाना - मनौती
न - चलना - चलन
नी - करना - करनी

क्रियाद्योदक कृदंत :
क्रिया के अंत में ता, आ, वा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से क्रियाद्योदक विशेषण बनते हैं. यद्यपि इनसे क्रिया का बोध होता है परन्तु ये हमेशा संज्ञा के विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं-
प्रत्यय ■ क्रिया ■ कृदंत रूप
ता - बहना- बहता
ता - भरना - भरता
ता - गाना - गाता
ता - हँसना - हँसता
आ - रोना - रोया
ता हुआ - दौड़ना - दौड़ता हुआ
ता हुआ - जाना - जाता हुआ

कृदंत और तद्धित में अंतर :
कृत्-प्रत्यय क्रिया अथवा धातु के अंत में लगता है, तथा इनसे बने शब्दों को कृदंत कहते हैं। तद्धित प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगता है और इनसे बने शब्दों को तद्धितांत कहते हैं। कृदंत और तद्धितांत में यही मूल अंतर है। संस्कृत, हिंदी तथा उर्दू-इन तीन स्रोतों से तद्धित-प्रत्यय आकर हिंदी शब्दों की रचना में सहायता करते हैं।

तद्धित प्रत्यय : हिंदी में तद्धित प्रत्यय के आठ प्रकार हैं
1. कर्तृवाचक,
2. भाववाचक,
3. ऊनवाचक,
4. संबंधवाचक,
5. अपत्यवाचक,
6. गुणवाचक,
7. स्थानवाचक तथा
8. अव्ययवाचक ।

कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा के अंत में आर, आरी, इया, एरा, वाला, हारा, हार, दार, इत्यादि प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं ।
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत
आर - सोना- सुनार
आरी - जूआ - जुआरी
इया - मजाक- मजाकिया
वाला - सब्जी - सब्जीवाला
हार - पालन - पालनहार
दार - समझ - समझदार

भाववाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा या विशेषण में आई, त्व, पन, वट, हट, त, आस पा इत्यादि प्रत्यय लगाकर भाववाचक तद्धितांत संज्ञा-पद बनते हैं । इनसे भाव, गुण, धर्म इत्यादि का बोध होता है ।
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
त्व - देवता- देवत्व
पन - बच्चा - बचपन
वट - सज्जा -सजावट
हट - चिकना -चिकनाहट
त - रंग - रंगत
आस - मीठा - मिठास

ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा-पदों के अंत में आ, क, री, ओला, इया, ई, की, टा, टी, डा, डी, ली, वा इत्यादि प्रत्यय लगाकर ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं। इनसे किसी वस्तु या प्राणी की लघुता, ओछापन, हीनता इत्यादि का भाव व्यक्त होता है।
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
क - ढोल - ढोलक
री - छाता- छतरी
इया - बूढी - बुढ़िया
ई - टोप- टोपी
की - छोटा- छोटकी
टा - चोरी - चोट्टा
ड़ा - दु:ख - दुखडा
ड़ी - पाग - पगडी
ली - खाट - खटोली
वा - बच्चा - बचवा

सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा के अंत में हाल, एल, औती, आल, ई, एरा, जा, वाल, इया, इत्यादि प्रत्यय को जोड़ कर सम्बन्धवाचक तद्धितांत संज्ञा बनाई जाती है.-
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
हाल - नाना -ननिहाल
एल - नाक - नकेल
आल - ससुर - ससुराल
औती - बाप - बपौती
ई - लखनऊ - लखनवी
एरा - फूफा -फुफेरा
जा - भाई - भतीजा
इया -पटना -पटनिया

अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय : व्यक्तिवाचक संज्ञा-पदों के अंत में अ, आयन, एय, य इत्यादि प्रत्यय लगाकर अपत्यवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनायी जाती हैं । इनसे वंश, संतान या संप्रदाय आदि का बोध होता है।
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
अ - वसुदेव -वासुदेव
अ - मनु - मानव
अ - कुरु - कौरव
आयन- नर - नारायण
एय- राधा - राधेय
य - दिति दैत्य

गुणवाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा-पदों के अंत में अ, आ, इक, ई, ऊ, हा, हर, हरा, एडी, इत, इम, इय, इष्ठ, एय, म, मान्, र, ल, वान्, वी, श, इमा, इल, इन, लु, वाँ प्रत्यय जोड़कर गुणवाचक तद्धितांत शब्द बनते हैं। इनसे संज्ञा का गुण प्रकट होता है-
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
आ - भूख - भूखा
अ - निशा- नैश
इक - शरीर- शारीरिक
ई - पक्ष- पक्षी
ऊ - बुद्ध- बुढहू
हा -छूत - छुतहर
एड़ी - गांजा - गंजेड़ी
इत - शाप - शापित
इमा - लाल -लालिमा
इष्ठ - वर - वरिष्ठ
ईन - कुल - कुलीन
र - मधु - मधुर
ल - वत्स - वत्सल
वी - माया- मायावी
श - कर्क- कर्कश

स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा-पदों के अंत में ई, इया, आना, इस्तान, गाह, आड़ी, वाल, त्र इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर स्थानवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं। इनमे स्थान या स्थान सूचक विशेषणका बोध होता है-
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
ई - गुजरात - गुजरती
इया - पटना - पटनिया
गाह - चारा - चारागाह
आड़ी -आगा- अगाड़ी
त्र - सर्व -सर्वत्र
त्र -यद् - यत्र
त्र - तद - तत्र

अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय : संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पदों के अंत में आँ, अ, ओं, तना, भर, यों, त्र, दा, स इत्यादि प्रत्ययों को जोड़कर अव्ययवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं तथा इनका प्रयोग प्राय: क्रियाविशेषण की तरह ही होता है।
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
दा - सर्व - सर्वदा
त्र - एक एकत्र
ओं - कोस - कोसों
स - आप - आपस
आँ - यह- यहाँ
भर - दिन - दिनभर
ए - धीर - धीरे
ए - तडका - तडके
ए - पीछा - पीछे

फारसी के तद्धित प्रत्यय : हिंदी में फारसी के भी बहुत सारे तद्धित प्रत्यय लिये गये हैं। इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. भाववाचक
2. कर्तृवाचक
3. ऊनवाचक
4. स्थितिवाचक
5. विशेषणवाचक

भाववाचक तद्धित प्रत्यय : 
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
आ - सफ़ेद -सफेदा
आना -नजर - नजराना
ई - खुश - ख़ुशी
ई - बेवफा - बेवफाई
गी - मर्दाना - मर्दानगी

कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय : 
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
कार - पेश - पेशकार
गार- मदद -मददगार
बान - दर - दरबान
खोर - हराम - हरामखोर
दार - दुकान- दुकानदार
नशीन - परदा - परदानशीन
पोश - सफ़ेद - सफेदपोश
साज - घड़ी - घड़ीसाज
बाज - दगा - दगाबाज
बीन - दुर् - दूरबीन
नामा - इकरार - इकरारनामा

ऊनवाचक तद्वित प्रत्यय : 
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
क- तोप - तुपक
चा - संदूक -संदूकचा
इचा - बाग - बगीचा

स्थितिवाचक तद्धित प्रत्यय : 
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
आबाद- हैदर - हैदराबाद
खाना- दौलत - दौलतखाना
गाह- ईद - ईदगाह
उस्तान- हिंद - हिंदुस्तान
शन - गुल- गुलशन
दानी - मच्छर- मच्छरदानी
बार - दर - दरबार

विशेषणवाचक तद्धित प्रत्यय : 
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत रूप
आनह- रोज- रोजाना
इंदा - शर्म -शर्मिंदा
मंद - अकल- अक्लमंद
वार- उम्मीद -उम्मीदवार
जादह -शाह - शहजादा
खोर - सूद - सूदखोर
दार- माल - मालदार
नुमा - कुतुब -कुतुबनुमा
बंद - कमर - कमरबंद
पोश - जीन - जीनपोश
साज -जाल- जालसाज

अंग्रेजी के तद्धित प्रत्यय : हिंदी में कुछ अंग्रेजी के भी तद्धित प्रत्यय प्रचलन में आ गये हैं:
प्रत्यय ■ शब्द ■ तद्धितांत- रूप ■ प्रकार
अर - पेंट - पेंटर - कर्तृवाचक
आइट- नक्सल -नकसलाइट - गुणवाचक
इयन -द्रविड़ - द्रविड़ियन - गुणवाचक
इज्म- कम्यून -कम्युनिस्म - भाववाचक

उपसर्ग और प्रत्यय का एकसाथ प्रयोग :
कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जिनकी रचना उपसर्ग तथा प्रत्यय दोनों के योग से होती है। जैसे –
अभि (उपसर्ग) + मान + ई (प्रत्यय) = अभिमानी
अप (उपसर्ग) + मान + इत (प्रत्यय) = अपमानित
परि (उपसर्ग) + पूर्ण + ता (प्रत्यय) = परिपूर्णता
दुस् (उपसर्ग) + साहस + ई (प्रत्यय) = दुस्साहसी
बद् (उपसर्ग) + चलन + ई (प्रत्यय) = बदचलनी
निर् (उपसर्ग) + दया + ई (प्रत्यय) = निर्दयी
उप (उपसर्ग + कार + क (प्रत्यय) = उपकारक
सु (उपसर्ग) + लभ + ता (प्रत्यय) = सुलभता
अति (उपसर्ग) + शय + ता (प्रत्यय) = अतिशयता
नि (उपसर्ग) + युक्त + इ (प्रत्यय) = नियुक्ति
प्र (उपसर्ग) + लय + कारी (प्रत्यय) = प्रलयकार

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