तांत्रिक बुरे कर्मो का ग्लोबलाइजेशन :- Part 1
बहुत से लोगों ने मुझसे कई बार प्रश्न पूछे थे कि पुराने जमाने में लोग हर बात पर यह समझाते थे कि इसके हाथ का या उसके हाथ दिया कुछ नहीं खाना, पीना नहीं तो ये कोई भूत प्रेत लगा देंगे। ऐसा क्यों कहा जाता था। उस जमाने में एक गांव के लोग दूसरे गांव के लोगों में भी वैसी दुश्मनी होती थी जैसे आज के जमाने से में भारत चीन की है।
क्योंकि छोटी छोटी रियासतें होती थी आपस में कई प्रकार की रंजिश बनी रहती थी।
तब तांत्रिक लोग कई प्रकार की खाने पीने की चीजों में कई प्रकार की चीजें मिला कर दुश्मनों को खिलाने के लिए दे देते थे। इन खाने पीने की चीजों में उल्लू, चमगादड़ का खून मांस या किसी ऐसे जीव का खून मांस मिला देते थे जिनमें तरह तरह के ऐसे बैक्टीरिया और वायरस होते हैं जो मनुष्यों में तरह तरह की बीमारियां उत्पन कर देते हैं। और हमारे वेद पुराणों में वायरस बैक्टीरिया का मतलब ही भूत प्रेत होता है।
जिनका कोई इलाज संभव नहीं होता था और धीरे धीरे वो बीमारियां बहुत से लोगों की मृत्यु का कारण बन जाती थी। पुराने जमाने में बाकी आज कि तरह दूसरी और बीमारियां कम होती थी अधिकतर मृत्यु बैक्ट्रियल या वायरस वाली बीमारियों के कारण होती थी। उसी आधार पर जिस घर में मृत्यु होती थी वहां कई प्रकार की छुआछूत मानी जाती थी। इसका मतलब वहीं आइसोलेशन होता था जैसा आजकल corona के कारण हो रहा है।
यही काम अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। इसमें देश द्रोही लोगों की भूमिका भी है और दवा उद्योग की भी।
इसलिए मैं लगातार एक साल से लोगों को बता रहा हूं कि अपने खाने पीने को लेकर सनातन संस्कृति के अनुसार व्यवहार करें। बाहर की बनी कोई भी चीज ठंडी ना खाए। उसे घर में लाकर गरम करके खाएं। आइस क्रीम, कोल्ड ड्रिंक से दूर रहे।
क्योंकि जो काम पहले स्थानीय स्तर पर तांत्रिक लोग करते थे अब वही काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक स्तर पर किया जा रहा है। यही लोग वायरस देंगे फिर यही लोग आपको दवा बेचेंगे।
जैसे आज कल के विश्व के सबसे बड़े तांत्रिक में से एक बिल गेट्स जो वुहान लैब में पैसा भी लगाते हैं और दवा उद्योग pfizer में वैक्सीन भी बनाते हैं। साथ ही साथ ज्योतिषी का काम करते हुए 2015 में ही corona वायरस आने की भविष्यवाणी भी कर देते हैं। और हमारे देश में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को अपनी pfizer कंपनी का मार्केटिंग ठेका भी दे देते हैं।
इसलिए सनातन संस्कृति अपनाएं और घरेलू स्तर पर जहां तक संभव हो आयुर्वेद अपनाएं।
जब मैं बहुत छोटा था 8-9 साल का तब मैं अपने इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के साथ गली मुहल्ले में पीछे भागा रहता था। तब ये नेता लोग जब किसी के घर में अगर बैठना पड़ ही जाए और उस घर वाले पानी पीने को ले आएं या कोई ठंडा जूस लें आए तो मना तो कर नहीं सकते क्योंकि वोट लेना है। तब ये नेता लोग बहाना बना देते थे कि मुझे ठंडा खाने को डॉक्टर ने मना किया है आप इसकी जगह गरम गरम चाय या दूध दे दो।
मतलब दोनों काम बचाव भी और वोट भी।
हमारे शास्त्रों में हर वर्ण समुदाय जिसका मतलब आज के जमाने के अनुसार आप किन्हीं और रूप में समझ सकते है के बारे में लिखा है कि किस समुदाय और किस वर्ण को अपने खाने पीने की व्यवस्था कैसे करनी है। कहां खाना कहां नहीं। क्या क्या चीज बाहर की खा सकते हैं क्या क्या नहीं।
__By Gopal Kapoor
