तांत्रिक बुरे कर्मो का ग्लोबलाइजेशन: Part 2
जैसा मैने अपने इस विषय पर लिखे लेख पार्ट वन में कहा था कि तांत्रिक बुरे कर्मो का इस्तेमाल किस प्रकार से वैज्ञानिक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है।
इसी प्रकार से कुछ अन्य तांत्रिक प्रयोगों का भी अंतरराष्ट्रीय करण हो चुका है। जैसे मैने अपने कई पुराने लेखों में लिखा है कि पुरष को वश में करने के लिए तांत्रिक लोग स्त्रियों को अपने मासिक धर्म के खून का इस्तेमाल करना सिखाते थे ताकि उस खून में उपस्थित एस्ट्रोजेन हार्मोन की गंध से पुरष उस की और आकर्षित हो जाए। जिसमे इस खून को अपनी त्वचा कि cleansing करे या पुरष को किसी ठंडी मीठी खाने की चीज में मिला कर खिला दे।
इसी प्रकार पुरषों को ये तांत्रिक लोग सिखाते थे कि स्त्रियों को वश में करने के लिए अपने वीर्य का प्रयोग करें क्योंकि स्त्रियां वीर्य में उपस्थित टेस्टोस्टेरोन की गंध से बहुत प्रभावित होती है। अब सृष्टि में स्त्री पुरष के बीच आकर्षण इन्हीं हार्मोन की गंध के कारण होता है। जैसा कि आप कुतों को उनके सीजन में देख सकते है कि वे mating से पहले एक दूसरे का सूंघ कर निरीक्षण करते है अगर सीजन ना हो तो कुते कुत्तिया आपस में लड़ाई करते रहते हैं।
अगर किसी को एक दूसरे की आदत डालनी हो उनमें गंध का बहुत रोल होता है। जैसे कोई स्मोकर हो तो शुरू में उसकी नई नई girlfriend जिसको सिगरेट की गंध से उल्टी आती हो धीरे धीरे उसकी आदि हो जाती है।
इसी प्रकार से अगर कोई किसी को अपने शरीर को कोई जूठन खिलाता पिलाता रहता है तो धीरे धीरे उनमें इतनी नजदीकियां बन जाती है कि वे एक दूसरे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। किसी गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड के रिश्ते में ऐसा ही होता है। लेकिन जब वे बहुत समय एक दूसरे से दूर हो जाए तो कुछ साल बाद उनकी एक दूसरे के लिए वह तलब समाप्त हो जाती है।
इन्हीं तांत्रिक बुरे कर्मो का प्रयोग पैगम्बर वादी व्यवस्था का अभिन्न अंग है। इसमें पैगम्बर या धर्मगुरु या मुला या पादरी का पेशाब, वीर्य थूक आदि प्रयोगों का इस्तेमाल आज वे सभी लोग खुल कर कर रहे है जो अपने occult को झुंड वादी बना कर रखना चाहते हैं। जैसे आपने पीछे कई समाचारों में देखा सुना कि कुछ धर्मगुरु दूध के स्विमिंग पूल में नहा कर फिर उस दूध को अपने भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट देते थे।
आजकल हर हाथ में मोबाइल कैमरा होने कि वजह से आप थूक, पेशाब मिलाने की घटनाएं देख पा रहे हैं।नहीं तो पहले ऐसी बाते छिपी रहती थी।
इससे आप इन प्रकार के लोगों से बहुत प्रेम भाव महसूस करते हैं और इन लोगों के हाथ की बनी चीजें खा पी कर यम्मी मम्मी कहते रहते है और घर की बनी चीजें स्वाद नहीं लगती।
इसलिए मेरी लोगों से प्रार्थना है कि सिर्फ घर में बनी चीजें खाएं या तो यम्मी मम्मी करते रहे और आज के हालात को आगे बनाए रखें।
इस प्रकार से सिर्फ सनातन संस्कृति के अनुसार आप अपने खाने पीने का कार्यक्रम चलाएं। अगर मजबूरी में बाहर खाना पीना पड़े तो सिर्फ गरम गरम चीजे ही खाएं।क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि अग्नि हर दोष को समाप्त कर देती है। शायद अब आपको समझ आए की हमारे पुराने हलवाई लोग सबके सामने दुकान के आगे कढ़ाई में गर्म गर्म चीजे बना कर बेचते है। जबकि आधुनिक पढ़े लिखे लोग उनकी आलोचना करते है। उनको तो plastic packaging में सजावट पसंद है।सनातन संस्कृति में पंचामृत दूध, दही, गंगाजल, गौमूत्र, शहद से बनता है जिससे हमें प्रकृति से प्रेम होता है। लेकिन यही काम पैगम्बर वादी व्यवस्था में पैगम्बर के पेशाब वीर्य थूक आदि से होता है जिससे हम एक झुंड के रूप में उसी पैगम्बर या धर्मगुरु या मुला या पादरी के भक्त बन कर उसके कहने से पशुओं कि भांति एक झुंड का हिस्सा बन जाते है।
इसलिए ये लोग एकता के साथ रहते हैं और उसी एकता के साथ समाज में दूसरे लोगों पर हावी हो जाते हैं।लेकिन सनातन संस्कृति सिर्फ प्रकृति के साथ जोड़ती है हर व्यक्ति की अपनी अलग सोच और व्यक्तित्व होता है इसलिए सनातन संस्कृति के लोगों में वह एकता या झुंडवादी प्रकृति नहीं दिखती। सनातनी सिर्फ सत्य कि खोज में रहता है लेकिन ये झुंड वादी सिर्फ अपनी बायलॉजिकल संतुष्टि तक सीमित होते हैं। जबकि इन झुंड वादियों में सत्य वहीं होता है जो इनके धर्मगुरु या मुला या पादरी या पैगम्बर बता देते हैं। सनातन में सत्य की खोज हर व्यक्ति लगातर अपने स्तर पर करता है और हर चीज तथ्य और तर्क के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार करता है।
अब दुनिया में समझ कार लोगों कि संख्या बल तो मूर्खों से कम ही होता है।
ये जो आप मंहगे परफ्यूम लेते हैं ना इनमे आर्टिफिशियल एस्ट्रोजेन स्त्रियों के परफ्यूम में और आर्टिफिशियल टेस्टोस्टेरोन पुरषों के परफ्यूम में मिला होता है। तभी तो परफ्यूम की ऐड में ऐसा बताया जाता है कि परफ्यूम लगाया नहीं लड़की या लड़का फसा नहीं।
बहुत ही ज्यादा महंगे परफ्यूम में असली एस्ट्रोजेन या टेस्टोस्टेरोन मिला होता है। ये बड़ी कंपनिया बड़े पैमाने पर वीर्य और मासिक धर्म का खून भी खरीदती है जिनसे ये असली हार्मोन निकाल कर इनको बहुत ही मंहगे परफ्यूम में मिलाती हैं। जबकि सबसे मंहगा परफ्यूम हमारे शरीर में ही होता है। तांत्रिक लोग इसी का इस्तेमाल करना सिखाते हैं।
__By Gopal Kapoor
