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SET-37 | सामान्य हिन्दी 360° | General Hindi 360°

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सामान्य हिन्दी 360° | कहावतें | SET-37


कहावतें : ‘कहावतें’ हिन्दी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है, ‘कही हुई बातें।’ यदि हम इसके अर्थ पर विचार करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कही हुई बात कहावत नहीं होती, बल्कि जिस कहावत में जीवन के अनुभव का सार-संक्षेपण चमत्कृत ढंग से किया जाए, उसे कहावत के अन्तर्गत माना जाता है।
उदाहरणार्थ रवीश ने कहा, “मैं अकेला ही कुआँ खोद लूँगा।” इस पर सभी ने रवीश की हँसी उड़ाते हुए कहा, व्यर्थ की बातें करते हो, “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता”। यहाँ कहावत का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है “एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता।”

कहावत को सूक्ति, सुभाषित और लोकोक्ति भी कहते हैं। इनमें से कहावत शब्द ही उपयुक्त है, क्योंकि सूक्ति या सुभाषित का अर्थ है–सुन्दर उक्ति या बात। लोकोक्ति शब्द इसलिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि लोकोक्ति का अर्थ– लोक(जनसाधारण) की उक्ति होता है।

मुहावरा और कहावत में अन्तर :
1. मुहावरा एक वाक्यांश होता है। कहावत एक वाक्य होता है।
2. मुहावरे का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग होता है। कहावत का स्वतन्त्र रूप में प्रयोग नहीं होता।
3. मुहावरे में उद्देश्य, विधेय का बन्धन नहीं होता लेकिन अर्थ की स्पष्टता के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कहावत में उद्देश्य और विधेय का पूर्ण विधान होता है इसलिए अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जाता है।
4. मुहावरे किसी बात को कहने का विचार अथवा अनुभव का मूल है। कहावत उस कथन में व्यक्त किए गए तरीका अथवा पद्धति है।
5. मुहावरा में काल, वचन तथा पुरुष के प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। कहावत में उसके रूप में किसी अनुरूप परिवर्तन हो जाता है।
6. मुहावरा का प्रयोग लाक्षणिक अर्थ अथवा अप्रस्तुत व्यंजना के लिए होता है। कहावत का प्रयोग प्रायः अन्योक्ति व्यक्त करने के लिए होता है।

हिन्दी की कुछ प्रचलित कहावतें, उनके अर्थ और प्रयोग
(अ)
1. अंधों में काना राजा–मूल् के मध्य कुछ चतुर।
निरक्षरों के मध्य कुछ पढ़ा–लिखा आदमी अंधों में काना राजा के समान होता है।
2. अंधेर नगरी चौपट राजा–अन्याय का बोलबाला।
अयोग्य अधिकारी होने पर सभी कामों में धांधली चलती है, ठीक ही कहा
गया है; अंधेर नगरी चौपट राजा।
3. अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे–स्वार्थी व्यक्ति पक्षपात करता है।
वर्तमान समय में नेतागण अंधा बाँटे रेवड़ी फिर–फिर अपनों को दे वाली उक्ति चरितार्थ करते हैं।
4. अंधी पीसे कुत्ता खाय–जब कार्य कोई करे उसका फायदा दूसरा व्यक्ति उठाए। 
मजदूर परिश्रम करता है, लेकिन लाभ पूँजीपति कमाता है। सच है– अंधी पीसे कुत्ता खाय।
5. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता–अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता है। 
शत्रुओं के बीच अकेले मत जाओ, क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।
6. अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग–मनमानी।
संगठन के अभाव में लोग अपनी–अपनी ढपली, अपना–अपना राग अलापते हैं।
7. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत–अवसर निकल जाने के बाद पछताना व्यर्थ होता है। 
साल भर तो पढ़ाई नहीं की, अब असफल होने पर रोते हो, इससे क्या लाभ? अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।
8. अपनी करनी पार उतरनी–अपने किए का फल भोगना।
जीवन में सफल होने के लिए स्वयं परिश्रम करो, क्योंकि अपनी करनी पार उतरनी।
9. अधजल गगरी छलकत जाए–कम ज्ञान, धन, सम्मान वाले व्यक्ति अधिक प्रदर्शन करते हैं। जब कोई अल्पज्ञ अधिक बकवास करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
10. अक्ल बड़ी या भैंस–शारीरिक बल से बौद्धिक बल अधिक अच्छा होता है। 
किसान पहले बहुत परिश्रम करता था, लेकिन उत्पादन कम था। अब उन्नत बीज, खाद व उपकरणों की सहायता से अधिक उत्पादन करता है। सच है अक्ल बड़ी या भैंस।
11. अन्त भला तो सब भला–परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ अच्छा माना जाता है। 
भारतीय क्रिकेट टीम कशमकश के पश्चात् पाकिस्तान दौरे पर गई और विजयी रही, सच है अन्त भला तो सब भला।
12. अंधे की लकड़ी–बेसहारे का सहारा।
राजकुमार पिता की अंधे की लकड़ी है।
13. अटकेगा सो भटकेगा–दुविधा या सोच विचार में पड़ोगे तो काम नहीं होगा।
मैं तैयारी करूँगा, चयन होगा या नहीं भूलकर तैयारी करो। कहावत है, जो अटकेगा सो भटकेगा।
14. अपना हाथ जगन्नाथ–स्वयं का काम स्वयं करना अच्छा होता है।
लाला जी ने पहले खाना बनाने के लिए महाराज रखा हुआ था, लेकिन वह अच्छा खाना नहीं बनाता था, ऊपर से सामान चुरा लेता था। अब लालाजी स्वयं खाना बना रहे हैं। सच कहावत है, अपना हाथ जगन्नाथ।
15. अपनी पगड़ी अपने हाथ–अपने सम्मान को बनाए रखना अपने ही हाथ में है। अपने से छोटे से भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए अन्यथा वे भी अपमान कर सकते हैं। इसलिए कहावत है अपनी पगड़ी अपने हाथ।
16. अपना रख पराया चख–निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग।
अपना रख पराया चख अब तो संजय की प्रकृति हो गई है।
17. अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ–बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं।
मैं सदैव अपने बाबा से किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य को करने से पहले सलाह लेता हूँ और कार्य सफल होता है। सच है अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
18. अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी–दोनों साथियों में एक से अवगुण।
शोभित में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है, पत्नी भी बुद्धिहीन है। अत: दोनों मिलकर कोई कार्य सही नहीं कर पाते। सच है अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी।
19. अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है–कटु वचन सत्य होने पर भी बुरा लगता है।
लाला जी परचून की दुकान करते हैं और सब चीजों में मिलावट करते हैं। जब कोई ग्राहक उनसे मिलावटी कह देता है, तो वे भड़क उठते हैं। इसलिए कहावत है अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
20. अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता–अपनी चीज को कोई बुरा नहीं बताता।
सब्जी वाला खराब और बासी सब्जियों को भी ताजी और अच्छी सब्जियाँ बनाकर बेच जाता है, कोई कहे भी तो मानता नहीं है। सच है अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता है।
21. अपनी चिलम भरने को मेरा झोंपड़ा जलाते हो–अपने अल्प लाभ के लिए दूसरे की भारी हानि करते हो।
आज ऐसा समय आ गया है अधिकांश व्यक्ति अपनी चिलम भरने के लिए दूसरे का झोंपड़ा जलाने में गुरेज नहीं करते।
22. अभी दिल्ली दूर है–अभी कसर है।
ग्यासुद्दीन तुगलक सूफी निजामुद्दीन औलिया को दण्ड देना चाहता था और तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ रहा था। इस पर औलिया ने कहा अभी दिल्ली दूर है।
23. अब की अब के साथ, जब की जब के साथ–सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए।
भगवान महावीर ने वर्तमान को अच्छा बनाने का उपदेश दिया, भविष्य अपने आप सुधर जाएगा। सच है अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
24. अस्सी की आमद नब्बे खर्च–आय से अधिक खर्च।
आजकल अधिकांश परिवारों का हाल है, अस्सी की आमद नब्बे खर्च।
25. अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना–पूर्ण स्वतन्त्र होना।
मैं अपने कार्य में किसी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करता। कहावत है अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
26. अपने झोपड़े की खैर मनाओ–अपनी कुशल देखो।
मुझे क्या धमकी दे रहे हो अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
27. अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज–अपने घर की बात दूसरों से कहने पर बदनामी होती है।
पहले तो तुमने अपने घर की बातें दूसरे से बता दीं, अब तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं। कहावत भी है, अपनी टांग उघारिये आपहि मरिए लाज।
28. अटका बनिया देय उधार–स्वार्थी और मज़बूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।
कारखाने में श्रमिकों की हड़ताल होने से कारखाना मालिक अकुशल श्रमिकों को भी दुगुनी–तिगुनी मजदूरी दे रहा है। कहावत सही है–अटका बनिया देय उधार।
29. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है–अपने घर में, क्षेत्र में सभी जोर बताते हैं।
यहाँ क्या अकड़ दिखाते हो, अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।
30. अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष–हममें ही कमजोरी हो तो बताने वालों का क्या दोष।
लड़का बेरोजगार है, सारा दिन आवारागर्दी करता है, लोग ताना न मारें तो क्या करें। जब अपना सोना खोटा तो परखैया का क्या दोष।
31. अढाई दिन की बादशाहत–थोड़े दिन की शान–शौकत।
शत्रुघ्न सिन्हा मन्त्री पद से हटा दिए गए, अढ़ाई दिन की बादशाहत भी समाप्त हो गई।

(आ)
32. आँख का अंधा नाम नयनसुख–नाम के विपरीत गुण।
उसके पास रहने की जगह नहीं है, नाम है पृथ्वीलाल। ठीक ही कहा गया है आँख का अंधा नाम नयनसुख।
33. आँख के अंधे गाँठ के पूरे–मूर्ख किन्तु धनी।
आजकल आँख के अंधे गाँठ के पूरे व्यक्ति मुकदमेबाज़ी अधिक करते हैं।
34. आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास–जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे कार्य के लिए जाता है, किन्तु बुरे कामों में फँस जाता है; तब यह कहावत कही जाती है।
कार्यकर्ता आए थे नेता संग चुनाव प्रचार को लेकिन जुआ खेलने लगे; इस पर नेताजी को कहना पड़ा, आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
35. आगे नाथ न पीछे पगहा–बिल्कुल स्वतन्त्र।
रहीम की बराबरी मत करो, क्योंकि उसके आगे नाथ न पीछे पगहा।
36. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है–अपराधी की संगति से निरपराध भी दण्ड का भागी बनता है।
संजय जुआरियों के पास खड़ा था, पुलिस उसे भी ले गई। सच है आटे के साथ घुन भी पिस जाता है।
37. आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै—अधिक लोभ करने से हानि ही होती है।
कुछ लोग अधिक लाभ के लालच में आकर दूसरा व्यापार करते हैं। इसका फल यह होता है कि उन्हें लाभ के बदले हानि होती है, ठीक ही कहा गया है–आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै।
38. आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे–जिधर जाएँ उधर ही मुसीबत।
जरदारी आतंकवाद को समाप्त करते हैं, तो कट्टरपंथी उन्हें चैन नहीं लेने देंगे और नहीं करते तो अमेरिका नहीं बैठने देगा। कहावत भी है आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँखें फूटे।
39. आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक–मौजी और विरक्त आदमी।
राजन ने खूब पैसा व्यापार में कमाया, लेकिन मुकदमेबाज़ी में सारा उड़ा दिया। कहावत भी है आई मौज़ फ़कीर की दिया झोपड़ा फूंक।
40. आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत–कोई कार्य स्वयं तो न करे पर दूसरों को सीख दे।
नेताजी कार्यकर्ताओं से जेल जाने की पुरजोर अपील कर रहे थे लेकिन स्वयं नहीं जा रहे थे। इस पर एक कार्यकर्ता ने कहा नेता जी यह तो आप न जावै सासुरे औरों को सिख देत वाली बात हो गई।
41. आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर–सबको मरना है।
आज आदमी धन के लिए दूसरे की जान का दुश्मन बना हुआ है जबकि वह जानता है, आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर।
42. आदमी पानी का बुलबुला है–मनुष्य जीवन नाशवान है।
आदमी का जीवन तो पानी का बुलबुला है जाने कब फूट जाए।
43. आम के आम गुठलियों के दाम–दुहरा फायदा।
कम्पीटीशन की तैयारी हेतु मैंने नोट्स तैयार किए थे, बाद में पुस्तक के रूप में छपवा दिए। मेरे तो आम के आम गुठलियों के दाम हो गए।
44. आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम–अपने मतलब की बात
करो। 
राम ने अजय को दस हज़ार रुपए माँगने पर उधार दिए तो वह पूछने लगा कि तुम्हारे पास ये पैसे कहाँ से आए। इस पर राम ने कहा तुम आम खाओ पेड़ गिनने से क्या काम।
45. आदमी की दवा आदमी है–मनुष्य ही मनुष्य की सहायता कर सकता है।
भोला ने नदी में डूबते आदमी को बचाया तो सभी कहने लगे, आदमी की दवा आदमी है।
46. आ पड़ोसन लड़ें–बिना बात झगड़ा करना।
रीना से ज्यादा बातचीत ठीक नहीं, उसकी आदत तो आ पड़ोसन लड़ें वाली है।
47. आसमान पर थूका मुँह पर आता है–बड़े लोगों की निन्दा करने से अपनी ही बदनामी होती है।
महात्मा गाँधी की बुराई करना आसमान पर थूकना है।
48. आठ कनौजिये नौ चूल्हे–अलगाव की स्थिति।
पूँजीवादी व्यवस्था में समाज इतना स्वार्थी हो गया है कि आठ कनौजिय नौ चूल्हे वाली स्थिति दिखाई देती है।
49. आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा–कमाया तो खाया नहीं तो भूखे।
फेरी वाले का क्या, यदि कुछ माल बिक जाता है तो खाना खा लेता है वरना भूखा सो जाता है। सच है, आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा।
50. आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ–आजीवन किसी चीज़ से पिण्ड न छूटना।
दमे की बीमारी के विषय में कहा जाता है आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ।
51. इतना खाएँ जितना पचे–सीमा के अन्दर कार्य करना चाहिए।
तुम सभी लोगों से पैसे उधार लेते रहते हो और खर्च कर देते हो। इससे तो तुम कर्ज में डूब जाओगे। सच है, इतना खाएँ जितना पचे।
52. इस हाथ दे उस हाथ ले–कर्म का फल शीघ्र मिलता है।
दूसरों का सम्मान करने से स्वयं को सम्मान मिलता है, ठीक ही है–इस हाथ दे उस हाथ ले।
53. इसके पेट में दाढ़ी है–उम्र कम बुद्धि अधिक।
अक्षित की बात क्या करनी उसके तो पेट में दाढ़ी है।
54. इधर न उधर, यह बला किधर–अचानक विपत्ति आ जाना।
गाड़ी से अलीगढ़ जा रहे थे कि रास्ते में जाम लगा पाया और लोगों ने घेर लिया, तब पिताजी को कहना पड़ा–इधर न उधर, यह बला किधर।।
55. इमली के पात पर दण्ड पेलना–सीमित साधनों से बड़ा कार्य करने का
प्रयास करना। 
लाला जी को कोई जानता नहीं और सांसद बनने के लिए खड़े हो रहे हैं। वे नहीं जानते कि इमली के पात पर दण्ड पेल रहे हैं।
56. इन तिलों में तेल नहीं किसी भी लाभ की सम्भावना न होना।
मैं जानता था इन तिलों में तेल नहीं है, इसलिए मैंने तुमसे उधार नहीं लिया और बाज़ार से लेकर काम चला रहा हूँ।
57. इधर कुआँ उधर खाई–हर तरफ़ मुसीबत।
मुशर्रफ आतंकवाद को समाप्त करे तो कट्टरपंथी चैन न लेने दे और न करे तो अमेरिका। सच है मुशर्रफ के लिए तो इधर कुआँ उधर खाई।

(ई)
58. ईंट की देवी माँगे का प्रसाद–जैसा व्यक्ति वैसी आवभगत।
इंग्लैण्ड में जैसा स्वागत मोदी जी का हुआ किसी अन्य का नहीं। सच है ईंट की देवी, माँगे का प्रसाद।
59. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया–संसार में कहीं दुःख है कहीं सुख है। 
किसी घर घी दूध की बहार है और किसी घर सूखी रोटी भी नहीं है, ठीक ही कहा गया है–ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

(उ)
60. उसी की जूती उसी का सिर–जिसकी करनी उसी को फल मिलता है।
शर्मा जी मुझे प्रधानाचार्य से कहकर आठवीं कक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन प्रधानाचार्य ने उन्हें ही आठवीं कक्षा दे दी। इसे कहते हैं उसी की जूती उसी का सिर।
61. उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी–दुविधा में पड़ना।
बीमारी में दफ़्तर जाओ तो बीमारी बढ़ने का भय, ना जाओ तो छुट्टी होने का भय। सच है उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी।
62. उल्टे बाँस बरेली को विपरीत कार्य करना।
किशोर गाँव जाते वक्त शहर से शुद्ध देसी घी लेकर गाँव पहुँचा तो पिताजी ने कहा, भई वाह तुम तो उल्टे बाँस बरेली को ले आए।

(ऊ)
63. ऊँट किस करवट बैठता है–न जाने भविष्य में क्या होगा।
आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस या भाजपा में कौन जीतेगा, देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है।
64. ऊधौ का लेन न माधौ का देन––किसी से कोई वास्ता न रखना।
मेरा क्या है रिटायरमेन्ट के पश्चात् मौज का जीवन गुजारूँगा, न ऊधौ का लेन न माधौ का देन।

(ए)
65. एक अनार सौ बीमार–एक ही वस्तु के अनेक आकांक्षी।
लोकसभा चुनाव में टिकट एक प्रत्याशी को मिलना है लेकिन टिकट माँगने वाले अनेक हैं। यहाँ तो एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
66. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा–दोहरा कटुत्व।
सुधा एक तो पढ़ने में कमज़ोर है और दूसरे शिक्षकों के प्रति उसका व्यवहार ठीक नहीं है, ऐसे लोगों के लिए कहा गया है–एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।
67. एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है–अच्छे समाज को एक बुरा व्यक्ति कलंकित कर देता है।
सेठ जी के परिवार में एक लड़का डकैत निकल गया, जिससे पूरा परिवार बदनाम हो गया। ठीक ही कहा गया है, एक सड़ी मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है।
68. एक हाथ से ताली नहीं बजती–झगड़े में दोनों पक्षों की गलती होती है,
इसलिए कहा गया है–एक हाथ से ताली नहीं बजती।
69. एक पन्थ दो काज/एक ढेले से दो शिकार–एक उपाय से दो कार्यों का होना।
रामू हिन्दी विषय में एम. ए. की तैयारी कर रहा था, उसने साहित्यरत्न का भी फॉर्म भर दिया, इस प्रकार उसके एक पन्थ दो काज हो गए।
70. एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे–दिखावटी रोना।
दादी की मृत्यु पर बुआ एक आँख से रो रही थी और एक आँख से हँस रही थी।
71. एक टकसाल के ढले हैं–सब एक जैसे हैं।
फैक्ट्री के कर्मचारियों को क्या कहोगे सब एक टकसाल के ढले हैं।
72. एक मुँह दो बात–अपनी बात से पलट जाना।
पहले आप कह रहे थे, मैं तुम्हें सम्पादक बनाऊँगा अब कह रहे हो उपसम्पादक बनाऊँगा। ये तो आप एक मुँह दो बात वाली बात कर रहे हो।
73. एक और एक ग्यारह होते हैं—एकता में बल है।
हमें मिलकर रहना चाहिए अन्यथा लोग लाभ उठा लेंगे। कहावत भी है–एक और एक ग्यारह होते हैं।
74. ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय–बूढ़ा और बेकार आदमी दूसरे पर बोझ हो जाता है।
भटनागर साहब बूढ़े हो गए और ठीक से कार्य नहीं कर पाते थे। अत: सेठ ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। सच है ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय।

(ओ)
75. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना–जब कार्य करना ही है तो आने वाली कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए।
टेस्ट क्रिकेट प्लेयर बनना चाहते हो तो छोटी–मोटी चोट से मत घबराओ। कहावत भी है ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना।
76. ओछे की प्रीति बालू की भीति–दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता क्षणिक होती है। 
कृष्ण के आड़े वक्त में सोनू ने उसकी मदद नहीं की, बल्कि उसे हानि पहुँचाने का प्रयास किया। जबकि दोनों में मित्रता थी। सच है ओछे की प्रीति बालू की भीति।
77. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती–बहुत कम वस्तु से आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती।
शिवकुमार ने सेठ जी से लड़की के ब्याह हेतु 50. हजार रुपये माँगे, लेकिन सेठ जी ने दो हजार रुपये देने की बात कही, इस पर शिवकुमार बोला, “सेठ जी, ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।”

(क)
78. कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी–उल्टी बात कहना।
जब भी तुमसे कोई बात कही जाती है तो तुम कबीरदास की उल्टी बानी, बरसे कम्बल भीगे पानी वाली कहावत चरितार्थ कर देते हो।
79. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा–इधर–उधर की सामग्री एकत्र करके कोई रचना करना।
आजकल लोग इधर–उधर की पुस्तकों से सामग्री लेकर पी. एच. डी. कर लेते हैं, ठीक ही कहा गया है–कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।
80. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली–अत्यधिक अन्तर।
बृहस्पति तो एक धनी बाप का पुत्र है और तुम एक मजदूर के बेटे हो, उसकी बराबरी कैसे करोगे? कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।
81. काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती–अन्याय बार–बार नहीं चलता।
महेश बिना टिकट यात्रा के अपराध में पकड़ा ही गया, ठीक ही कहा गया है काठ की हाण्डी बार–बार नहीं चढ़ती
82. कर सेवा खा मेवा–अच्छे कार्य का फल अच्छा मिलता है।
सुनील ने अजय से कहा, “मेहनत से प्रकाशन में कार्य करो तरक्की पा जाओगे’ कहावत सच है कर सेवा खा मेवा।
83. कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना–जो मिले उसी में सन्तुष्ट रहना चाहिए। 
तुम्हें जो काम मिले उतने में ही सन्तुष्ट रहते हो। तुम्हारे लिए कहावत सच है कभी घना–घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना।
84. कब्र में पाँव लटकाए बैठा है–मरने वाला है।
वो कब्र में पाँव लटकाए बैठे हैं, लेकिन मजाक भद्दी करते हैं।
85. कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता–ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण नहीं छिप जाते। 
विवेक साइकिल चोर है लेकिन सूट–बूट में रहता है। लोग उसे जानते हैं इसलिए उससे कतराते हैं। सच है कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता।
86. कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय–दुष्ट व्यक्ति की प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं होता उसे चाहे कितनी ही सीख दी जाए। 
संजय को मैंने बहुत समझाया कि शराब और जुआ छोड़ दे पर वह नहीं माना। सच है कोयला होय न उजला सौ मन साबुन धोय।
87. कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है–महान् व्यक्ति छोटी–सी नुक्ता–चीनी पर ध्यान नहीं देता है।
साधु महाराज पर सड़क पर गुजरते समय कुछ लोग छींटाकशी कर रहे थे, लेकिन वे निरन्तर बढ़ते जा रहे। वहाँ ये कहावत चरितार्थ हो रही थी कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चलता जाता है।
88. काम का ना काज का दुश्मन अनाज का–निकम्मा व्यक्ति।
वह 30 वर्ष का हो गया, बेरोज़गार है। अतः सभी उसे कहते हैं काम का ना काज का दुश्मन अनाज का।
89. कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवै–अधिक धन चिन्ता का कारण होता है। 
सेठ रामलाल सारी रात जागते रहते हैं, चोरों के भय से उन्हें नींद नहीं आती। सच है कोठी वाला रोवे छप्पर वाला सोवे।
90. कहे खेत की, सुने खलिहान की–कहा कुछ गया और समझा कुछ गया।
तुम भी बिल्कुल नमूने हो, कहे खेत की, सुनते हो खलिहान की।
91. काम को काम सिखाता है–काम करते–करते आदमी होशियार हो जाता है।
जब दिनेश इस प्रकाशन में आया था प्रूफ रीडिंग से अनजान था, लेकिन काम को काम सिखाता है, आज वह ट्रेंड प्रूफ रीडर हो गया।
92. कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता–हठी पुरुष समझाने से दूसरों का कहना नहीं मानता।
लड़की के सगे सम्बन्धियों ने लड़के के पिता से खाना खाने का अनुरोध किया लेकिन नहीं माना तब लड़के के ताऊ ने कहा, कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता।
93. कोऊ नृप होय हमें का हानी—किसी के पद, धन या अधिकार मिलने से हम पर कोई प्रभाव नहीं होता।
कांग्रेस की सरकार आए या भाजपा की इससे हमें क्या फ़र्क पड़ता है। हमारे लिए तो कोऊ नृप होय हमें का हानि वाली कहावत चरितार्थ होती है।
94. कौआ चला हंस की चाल–दूसरों की नकल पर चलने से असलियत नहीं छिपती तथा हानि उठानी पड़ती है। 
छोटे से प्रेस मालिक ने बड़े प्रकाशकों की नकल करते हुए मॉडल पेपर निकाल दिए लेकिन वे नहीं बिके जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिनके पैसे डूब गए उन्हें कहना पड़ा कौआ चला हंस की चाल।।
95. कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है–लाभ जहाँ से होता है, वहीं खर्च हो जाता है।
आशीष की नौकरी दिल्ली में लगी वहाँ पर मकान तथा अन्य खर्चे इतने अधिक हैं कि बचत नहीं हो पाती। सच है कुएँ की मिट्टी कुएँ में ही लगती है।
96. कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता–कोई अपने माल को खराब नहीं कहता।
सब्जी वाले बासी सब्जी को भी ताजी बताकर बेचते हैं। कहावत सच है कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता।
97. कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है–सफ़ाई सबको पसन्द होती है।
तुम्हारी कुर्सी पर कितनी धूल जमी है। कैसे आदमी हो तुम, कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है।
98. किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान–स्वाभिमान की रक्षा नौकरी में नहीं हो सकती।
सेठ ने डाँट दिया तो क्या नौकरी छोड़ दोगे, किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान।
99. कखरी लरका गाँव गोहार–वस्तु के पास होने पर दूर–दूर उसकी तलाश करना। 
अच्छी संगीत पार्टी के लिए शर्मा जी दिल्ली तक गए, लेकिन मेरठ में ही कम पैसों में अच्छी संगीत पार्टी मिल गई, तब मित्र बोले कि कखरी लरका गाँव गोहार।
100. कोयले की दलाली में हाथ काले–बुरी संगति का परिणाम बुरा होता है।
वह जुआरियों के लिए बीड़ी सिगरेट ला देता है। अत: एक दिन जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो उसे भी हड़काया। सच है कोयले की दलाली में हाथ काले।
101. काला अक्षर भैंस बराबर–निरक्षर व्यक्ति।
राजेश से पत्र लिखवाने की कह रहे हो; उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
102. कानी के ब्याह को सौ जोखो–पग–पग पर बाधाएँ।
लोकेश के चुगली करने पर राधा का रिश्ता टूट गया, इस पर रामकली बोली, “बड़ी मुश्किल से रिश्ता हुआ था, सच कहावत है–कानी के ब्याह को सौ जोखो।”

(ख)
103. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है–जब कोई व्यक्ति अपने साथी
के अनुसार आचरण करने लगता है तब यह कहावत कही जाती है।
104. खुदा गंजे को नाखून नहीं देता–अयोग्य को अधिकार नहीं मिलता।
अकर्मण्य व्यक्ति को अधिकार नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि खुदा गंजे को नाखून नहीं देता।
105. खेत खाए गदहा, मारा जाए जुलाहा–जब किसी व्यक्ति के अपराध पर दण्ड किसी अन्य को मिलता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
106. खोदा पहाड़ निकली चुहिया–अधिक कार्य का अत्यल्प फल।
भाजपा के शीर्ष नेताओं ने यू. पी. में लोकसभा चुनावों में बहुत परिश्रम किया लेकिन बहुमत नहीं ले पाई। सच में यह कहावत चरितार्थ हो गई खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
107. खाक डाले चाँद नहीं छिपता–अच्छे आदमी की निंदा करने से कुछ नहीं बिगड़ता।
महात्मा गाँधी की निंदा करना अनुचित है। खाक डाले चाँद नहीं छिपता।
108. खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती–कोई नहीं जानता कि भगवान कब, कैसे, क्यों दण्ड देता है।
तुम गरीबों का घोर शोषण करते हो, जानते नहीं खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती।
109. खग ही जाने खग की भाषा–सब अपने–अपने सम्पर्क के लोगों का हाल समझते हैं।
व्यापारी एक–दूसरे से इशारे ही इशारों में बात कर लेते हैं और आम इनसान कुछ नहीं समझ पाता। सच है खग ही जाने खग की भाषा।
110. खरी मजूरी चोखा काम–पूरी मज़दूरी देने पर ही काम अच्छा होता है।
अच्छे फैक्ट्री मालिक खरी मजूरी चोखा काम की नीति में विश्वास करते हैं।
111. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे–खिसियाहट में क्रोधवश लोग अटपटा कार्य करते हैं।
अधिकारी से डाँट खाने के पश्चात् क्लर्क चपरासी से जाड़े में कोल्ड ड्रिंक लाने की हुज्जत करने लगा। इस पर साथी ने कहा खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे।
112. खुशामद से ही आमद है–खुशामद से ही धन आता है।
आजकल का समय खुशामद से ही आमद का है।
113. खेती, खसम लेती है–कोई काम अपने हाथ से करने पर ही ठीक होता है।
रोज घर जल्दी चले आते हो, ऐसे तो व्यापार ठप्प हो जाएगा। जानते हो खेती, खसम लेती है।
114. खूटे के बल बछड़ा कूदे–किसी की शह पाकर ही आदमी अकड़ दिखाता है।
मैं जानता हूँ तुम किस खूटे के बल कूद रहे हो, मैं उसे भी देख लूँगा।

(ग)
115. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज–बनावटी त्याग।
स्वामी जी प्याज नहीं खाते, परन्तु प्याज की पकौड़ियाँ खाँ लेते हैं, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है—गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज।
116. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास–जो व्यक्ति सामने आए उसकी प्रशंसा करना। 
कुछ लोगों की आदत होती है कि उनके सामने जो व्यक्ति आता है उसी की प्रशंसा करने लगते हैं, ऐसे लोगों के लिए ही कहा जाता है–गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास।
117. गाँठ का पूरा आँख का अंधा–पैसे वाला तो है पर है मुर्ख।
आज के युग में गाँठ का पूरा आँख का अंधे की तलाश किसे नहीं है।
118. गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त—जिसका काम है वो आलस्य में रहे और दूसरे फुर्ती दिखाएँ। 
मास्टर जी तुम्हें पास कराने के लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं और तुम बिल्कुल भी पढ़ने में मन नहीं लगा रहे, ये तो गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त वाली बात हो गई।
119. गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचे–भला करने वाले के साथ दुष्टता करना।
आजकल बहुत बुरा समय आ गया है। लोग गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचते हैं।
120. गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी–अपनी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की इच्छा से प्रयत्न करते–करते नई विपत्ति का आ जाना।
शर्मा जी मेहमान आने के भय से घूमने गए। वहाँ उनके समधी मिल गए और उनका स्वागत करना पड़ा। गए रोज़े छुड़ाने नमाज़ गले पड़ी।
121. गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता है किसी भी उपाय से स्वभाव
नहीं बदलता। 
उससे तुम्हारा विवाह नहीं हुआ अच्छा हुआ। वो तो बहुत अहंकारी औरत है। कहावत है गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता।
122. गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे–विपत्ति में बुद्धि काम नहीं करती। 
लाला परमानन्द के यहाँ आयकर विभाग का छापा पड़ा तो उस कमरे में चल दिए जहाँ अकूत धन और कागज़ रखे हुए थे। इसे देख आयकर वाले बोले गीदड़ की शामत आए तो गाँव की ओर भागे।
123. गरजै सो बरसै नहीं–डींग हाँकने वाले काम नहीं करते।
राजेश ने कहा था कि वह आई. ए. एस. बनके दिखाएगा। इस पर मित्र ने कहा, जो गरजै सो बरसै नहीं।

(घ)
124. घर का भेदी लंका ढावे–रहस्य जानने वाला बड़ा घातक होता है।
जयचन्द ने मुहम्मद गोरी से मिलकर घर का भेदी लंका ढावे उक्ति को चरितार्थ कर दिया।
125. घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या–व्यापार में रिश्तेदारी नहीं निभाई जाती। 
जो जिस वस्तु का व्यापार करता है, उसमें लाभ न ले तो, उसका खर्च कैसे चले। इसीलिए कहा गया है कि घोड़ा घास से यारी करे तो खाए क्या।
126. घोड़ों को घर कितनी दूर–पुरुषार्थी के लिए सफलता सरल है।
आशीष रात में कार चलाकर नैनी से लखनऊ आया तो ससुर साहब ने चिन्ता जतायी। इस पर आशीष ने कहा घोड़ों को घर कितनी दूर।
127. घोड़े को लात, आदमी को बात–दुष्ट से कठोरता का और सज्जन से नम्रता का व्यवहार करें।
सुनील घोड़े को लात, आदमी को बात वाली नीति में विश्वास करता है।
128. घायल की गति घायल जाने–जो कष्ट भोगता है वही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है।
गरीब आदमी कैसे अभाव में अपना जीवन गुजारता है। यह गरीब व्यक्ति ही समझ सकता है। सच है घायल की गति घायल जाने।
129. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध—किसी आदमी की प्रतिष्ठा अपने निवास स्थान पर कम होती है।
वह मेरठ में तो एक साधारण से प्रकाशन में था, लेकिन दिल्ली जाकर बहुत बड़े प्रकाशन में उच्च पद पर पहुँच गया है। सच है घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।
130. घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते–घर में आने वाले का सत्कार करना चाहिए।
शिवानी जाओ चाय नाश्ता ले जाओ। भले ही यह व्यक्ति हमारा विरोधी है। जानती नहीं घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते।
131. घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा–उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है।
कल तक नेताजी पर साइकिल नहीं थी। विधायक होते ही उन पर ऐश–ओ–आराम की सभी वस्तुएँ आ गईं। कहावत भी है घोड़े की दुम बढ़ेगी, तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा।
132. घर की मुर्गी दाल बराबर–अपने घर के गुणी व्यक्ति का सम्मान न करना।
जब मुझे बीरबल साहनी पुरस्कार प्रदान किया गया तब घर के लोगों में ऐसा उत्साह नहीं देखा गया, जैसा दिखना चाहिए। सच “घर की मुर्गी दाल बराबर”।
133. घर खीर तो बाहर भी खीर–सम्पन्नता में सर्वत्र प्रतिष्ठा मिलती है।
इतना जान लो कि जब तुम्हारा पेट भरा रहेगा तभी दूसरे लोग खाने के लिए पूछेगे। सच, “घर खीर तो बाहर भी खीर।”

(च)
134. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय–बहुत कंजूस होना।
जो व्यक्ति बहुत कंजूस होते हैं उनके लिए कहा जाता है–चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
135. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात–अल्प समय के लिए लाभ।
नैनीताल के होटल वाले गर्मी में पर्यटकों से अधिक से अधिक पैसा कमाने का प्रयास करते हैं, क्योंकि मौसम निकलने के बाद ऐसा अवसर कहाँ? ठीक ही कहा गया है–चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
136. चोर की दाढ़ी में तिनका–अपराधी सदा शंकित रहता है।
कथा—एक दरोगा जी चोरी के मामले पर विचार कर रहे थे। जिन–जिन लोगों पर शक था, वे सभी सामने खड़े थे। थोड़ी देर बाद दरोगा जी ने कहा–जो चोर है उसकी दाढ़ी में तिनका है: यह सुनकर सभी लोग ज्यों, के त्यों खड़े रहे,
लेकिन जो चोर था वह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर कर देखने लगा कि कहीं मेरी दाढ़ी में तिनका तो नहीं है। दरोगा जी तुरन्त ताड़ गए कि कौन चोर है। यह कहावत इसी कथा से निकली हुई प्रतीत होती है।
137. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे बनकर आए–लाभ के बदले हानि।
जब कोई व्यक्ति लाभ की आशा से कोई कार्य करता है और उसमें हानि हो जाती है, तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
138. चोर के पैर नहीं होते–अपराधी अशक्त होता है।
जब पुलिस ने कड़ाई से रविन्द्र से पूछताछ की तो उसने स्वीकार कर लिया कि उसने ही चोरी की है। सच कहावत है चोर के पैर नहीं होते।
139. चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता–निर्लज्ज पर उपदेशों का असर नहीं
पड़ता। 
गिरीश मोहन को चाहे कितना समझा लो, डांट लो, शर्मिन्दा कर लो; लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता है। चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता कहावत उस पर चरितार्थ होती है।
140. चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी–शाम होते ही सोने लगना।
अब राज के घर जाना बेकार है वह तो चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी वालों में है।
141. चूहों की मौत बिल्ली का खेल–किसी को कष्ट देकर मौज़ करना।
कालाबाज़ारियों को अधिक से अधिक लाभ से मतलब है चाहे कितने ही लोग भूख से मर जाएँ। कहावत है चूहों की मौत बिल्ली का खेला,
142. चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं–घमण्ड करने से नाश होता है।
सुबोध तुम्हें घमण्ड हो गया। यह मत भूलो चींटी की मौत आती है तो पर निकलते हैं।
143. चूहे का बच्चा बिल खोदता है–जाति स्वभाव में परिवर्तन नहीं होता।
बबलू लकड़ी का मकान बनाता है, उसके पिता बिल्डर हैं। सच है चूहे का बच्चा बिल खोदता है।
144. चोरी और सीना जोरी–दोषी भी हो घुड़की भी दे।
पहले जैन साहब से दस हजार रुपए उधार ले गए, माँगने पर कहते हो . दिए ही नहीं। पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगा कि तुम कालाबाजारी करते हो। तुम्हारी नीति सही है चोरी और सीना जोरी।
145. चोर–चोर मौसरे भाई–एक पेशे वाले आपस में नाता जोड़ लेते हैं।
यदि आज किसी विभाग के सरकारी कर्मचारी, भ्रष्ट व्यापारी और उद्योगपति के छापा मारते हैं, तो वे सब एक होकर उसका विरोध करने लगते हैं। सच है चोर–चोर मौसरे भाई।
146. चुपड़ी और दो–दो–अच्छी चीज और वह भी बहुतायत में।
राज का पी. सी. एस. में चयन हो गया और उसे पोस्टिंग भी मुज़फ़्फ़रनगर में मिल गई। यही तो है चुपड़ी और दो–दो।
147. चोरी का माल मोरी में—गलत ढंग से कमाया धन यों ही बर्बाद होता है।
परचून की दुकान वाले ने मिलावट करके लाखों रुपया कमाया लेकिन कुछ पैसा बीमारी में लग गया बाकी चोर चोरी करके चले गए, तब पड़ोसी बोले चोरी का माल मोरी में।
148. छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल–किसी व्यक्ति को ऐसी वस्तु की प्राप्ति हो, जिनके लिए वह सर्वथा अयोग्य हो।
उसे हिन्दी भाषा का तनिक भी जान नहीं था, किन्तु वह हिन्दी विषय का प्रवक्ता बन गया। यह तो, “छछुन्दर के सिर पर चमेली का तेल” के समान है।
149. छोटा मुँह बड़ी बात– छोटे लोगों का बढ़–चढ़कर बोलना।
राकेश सामान्य–सा चपरासी है, किन्तु अपने अधिकारियों से ऐसे रौब झाड़ते हुए बात करता है, जैसे– “छोटा– मुँह बड़ी बात।”

(ज)
150. जल में रहकर मगर से बैर–बड़ों से शत्रुता नहीं चलती।
उमेश तुमने अपने अधिकारी से बिगाड़ क्यों की? जल में रहकर मगर से बैर नहीं चलेगा।
151. जब तक साँस तब तक आस–आशा जीवनपर्यन्त बनी रहती है।
डॉक्टर को बुलाकर दिखा दीजिए जब तक साँस तब तक आस।
152. जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि–कवि की कल्पना अनन्त होती है।
कालिदास और भवभूति जैसे कवियों की रचनाओं को पढ़कर कहा जा सकता है–जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि।
153. जान है तो जहान है–जीवन ही सब कुछ है।
कथा है–किसी गाँव के तालाब में एक सियार डूब रहा था। गाँव के लोग उसे देख रहे थे। डूबता सियार चिल्लाने लगा, अरे बचाओ ! सारा जहान डूबा जा रहा है। गाँव वालों ने सोचा सियार शगुनी जानवर होता है, अवश्य ही कोई विशेष बात कह रहा होगा। ऐसा सोचकर गाँव वालों ने उसे पानी से निकाला और जहान डूबने की बात पूछी। सियार ने उत्तर दिया–जब मैं डूबा जा रहा था तो मेरे लिए सारा जहान डूबा जा रहा था। जान है तो जहान है, जान नहीं तो जहान नहीं। तभी से यह कहावत चल पड़ी–जान है तो जहान है।
154. जिसकी लाठी उसकी भैंस–जबर्दस्त का बोल–बाला।
आजकल नेतागण गुण्डागर्दी के बलबूते चुनाव जीतकर जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत को चरितार्थ करते हैं।
155. जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ होवै बन्टाधार—मनहूस आदमी हर काम को बनाने के बजाय उसमें विघ्न ही डालता है।
उसे शादी में लाइट की व्यवस्था का जिम्मा मत सौंपना उस पर तो जहँ–जहँ पाँव पड़े सन्तन के तहँ–तहँ बन्टाधार कहावत चरितार्थ होती है।
156, जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात–लालच में कोई काम करना।
पूँजीवादी व्यवस्था में बहुत से बेरोज़गार जहाँ देखे तवा परात वहाँ गाए सारी रात वाली नीति पर चलने लगे हैं।
157. जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई–स्वयं दुःख भोगे बिना दूसरे के दर्द का एहसास नहीं होता।
वो गरीब है इसलिए तुम उसका मज़ाक उड़ा रहे हो कि उसके जूते फटे हैं। सच कहावत है जाकै पैर न फटे बिवाई वह क्या जाने पीर पराई।
158. जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या सवेरा नहीं होता—किसी एक की वजह से संसार का काम नहीं रुकता। 
तुम यदि प्रकाशन से चले गए तो प्रकाशन क्या बन्द हो जाएगा। कहावत नहीं सुनी
जहाँ मुर्गा नहीं होता तो क्या सवेरा नहीं होता।
159. जाय लाख रहे साख–इज्जत रहनी चाहिए व्यय कुछ भी हो जाए।
मेरा तो एक सूत्रीय सिद्धान्त में विश्वास है जाय लाख रहे साख।
160. जान बची लाखो पाए–किसी झंझट से मुक्ति।
दंगे में शर्मा जी फँस गए। किसी तरह पुलिस की मदद से निकले तो कहने लगे जान बची लाखो पाए।
161. जान मारे बनिया पहचान मारे चोर–बनिया और चोर जान पहचान वाले को ही ज़्यादा ठगते हैं।
बनिये ने इस महीने मुझसे सामान में दो सौ रुपए अधिक ले लिए, जबकि वो हमें अच्छी तरह जानता है। इस पर मैडम बोली जानते नहीं जान मारे बनिया पहचान मारे चोर।
162. जिन ढूंढा तिन पाइया गहरे पानी पैठ–जो संकल्पशील होते हैं, वे कठिन परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं।
163. जस दूल्हा तस बनी बरात–जैसा मुखिया वैसे ही अन्य साथी।
जैसे बिजली विभाग का इंजीनियर भ्रष्ट है वैसे ही उसके कार्यालय के अन्य कर्मचारी भ्रष्ट हैं। कहावत सच है, जस दूल्हा तस बनी बरात।
164. जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ–दोनों एक समान।
मायावती भाजपा और कांग्रेस को जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ कहती हैं।
165. जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया–बदनामी भी हुई और लाभ भी नहीं मिला।
तुमने उस लड़की से प्यार किया उसने धोखा दिया और किसी और से शादी कर ली। तुमने तो जीभ जली और स्वाद भी कुछ न आया वाली कहावत चरितार्थ कर दी।
166. जहाँ जाय भूखा वहाँ पड़े सूखा–दुःखी कहीं भी आराम नहीं पा सकता।
गरीबी से तंग आकर विराट भाई के पास रहने के लिए चला गया पर वहाँ पता लगा कि कुछ दिन पहले घर चोरी हो गई। वह सोचने लगा–जहाँ जाए भूखा वहाँ पड़े सूखा।
167. जड़ काटते जाना और पानी देते रहना–ऊपर से प्रेम दिखाना, अप्रत्यक्ष में
हानि पहुँचाते रहना। 
प्रशान्त जब मुझसे मिलता है हँसकर प्रेम से बात करता है लेकिन पीछे भाई साहब से मेरी बुराई करता है। जब मुझे पता चला तो मैंने उससे कहा कि तुम जड़ काटते हो ऊपर से पानी देते हो।
168. जितने मुँह उतनी बातें––एक ही बात पर भिन्न–भिन्न कथन।
तुम अपने काम में ध्यान लगाओ। लोगों का काम तो कहना है जितने मुँह उतनी बातें।
169. जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा–जो मन में है वह प्रकट होगा ही।
मित्रता का दम भरने वाला प्रशान्त जब भाई के सामने ज़हर उगलने लगा तो मैंने कहा–जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा, आखिर तुम्हारी असलियत पता चल ही गई।
170. जैसा करोगे वैसा भरोगे–अपनी करनी का फल मिलता है।
निर्दोष लोगों की हत्या करने वालों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया। कहावत सच है जैसा करोगे वैसा भरोगे।
171. जैसा मुँह वैसा थप्पड़–जो जिसके योग्य हो उसे वही मिलता है।
शादी में मौसी और मामी को मम्मी ने बढ़िया साड़ियाँ दी जबकि बुआओं को साधारण साड़ी दी। कहावत सच है जैसा मुँह वैसा थप्पड़।
172. जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश–निकम्मा आदमी घर में हो या बाहर कोई अन्तर नहीं।
पहले नवनीत घर पर रहता था तो भी कुछ नहीं कमाता था, जब दिल्ली गया तो दोस्त के घर पर उसके टुकड़ों पर रहने लगा। जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे परदेश।
173. जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा–जितना खर्च करोगे वस्तु उतनी ही अच्छी मिलेगी।
आप ₹ 200 में सिल्क की शानदार साड़ी माँग रही हो। इतने में तो साधारण साड़ी आएगी। बहन जी जितना गुड़ डालोगी, उतना ही मीठा होगा।
174. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना—जो उपकार करे उसका अहित करना।
मुझ पर ऐसा इल्ज़ाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता। मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद नहीं करता।
175. जिसका खाइये उसका गाइये–जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लें।
आजकल लोग इतने समझदार हो गए हैं कि जिसका खाते हैं उसका गाते हैं।
176. जिसका काम उसी को साजै–जो काम जिसका है वही उसे ठीक तरह
से कर सकता है। 
एक दिन शिवानी बिजली का प्लग सही करने लगी तो वह रहा सहा भी खराब हो गया। इस पर मैंने कहा जिसका काम उसी को साजै।
177. जितनी चादर देखो उतने पैर पसारो–अपनी आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
सुबोध एक ही सप्ताह में सारी तनख्वाह खर्च कर देता है फिर लोगों से उधार लेता रहता है। एक दिन साहब ने कहा सुबोध जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए।
178. ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय–जैसे–जैसे समय बीतता है
जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं। 
राजीव के एक बच्चा हो जाने के पश्चात् उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं। कहावत है ज्यों–ज्यों भीजे कामरी त्यों–त्यों भारी होय।
179. जैसा देश वैसा भेष–किसी स्थान का पहनावा, उस क्षेत्र विशेष के अनुरूप होता है।
जब मैं घर से बाहर शहर जाता हूँ, तो पैंट–शर्ट पहनता हूँ और जब गाँव में रहता हूँ तो कुर्ता–पायजामा पहनता हूँ, सच है जैसा देश वैसा भेष।

(झ)
180. झूठ के पाँव नहीं होते– झूठ बोलने वाला एक बात पर नहीं टिकता।
न्यायालय में पैरवी के दौरान एक ही गवाह के तरह–तरह के बयान से न्यायाधीश बौखला गया। वह समझ गया था, “झूठ के पाँव नहीं होते।”
181. झोंपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें–सामर्थ्य से बढ़कर चाह रखना।
‘झोपड़ी में रह, महलों का ख़्वाब देखें’ कहावत उन लोगों पर सटीक बैठती है, जो पूरी तरह से अर्थाभाव में जीते हैं, किन्तु मालदार सेठ बनने का ख़्वाब देखते हैं।

(ट)
182. टके की मुर्गी नौ टके महसूल–कम कीमती वस्तु अधिक मूल्य पर देना।
जब किसी वस्तु के मूल्य से अधिक उस पर खर्च हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
183. टके का सब खेल–“धन–दौलत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं।”
आज के युग में जो चाहो, पैसा देकर हथिया लिया जा सकता है, क्योंकि भ्रष्टाचार के ज़माने में ‘टके का सब खेल’ है।

(ठ)
184. ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम–अच्छी वस्तु का अच्छा मूल्य।
यह तो बाज़ार है–यहाँ कुछ वस्तुएँ सस्ती हैं तो कुछ महँगी भी, यानि जैसी चीज़ वैसा दाम। ऐसे में तो ‘ठोक बजा ले चीज़, ठोक बजा दे दाम’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
185. ठोकर लगे तब आँख खुले—“कुछ गँवाकर ही अक्ल आती है।
तुम अपने को कितना ही समझदार कह लो, लेकिन जब तक ठोकर नहीं लगती आँख नहीं खुलती।

(ड)
186. डण्डा सबका पीर–सख्ती करने से लोग नियंत्रित होते हैं।
कक्षा में राहुल नाम का छात्र बहुत शरारती था, लेकिन जब से अध्यापकों ने थोड़ी सी सख़्ती क्या की, वह अनुशासन में रहता है, क्योंकि ‘डण्डा सबका पीर’ होता है।
187. डायन को दामाद प्यारा–अपना सबको प्यारा होता है।
यदि तुम उस नेता के लड़के की शिकायत करोगे तो क्या वह तुम्हारी सुनेगा, क्योंकि ‘डायन को दामाद प्यारा’ होता है।
188. ढाक के तीन पात–सदैव एक–सी स्थिति में रहने वाला।
वास्तव में, जो योगी होता है, उसके लिए न तो हर्ष है और न विषाद, वह तो एक ही स्थिति में रहता है ‘ढाक के तीन पात’ की तरह।
189. ढोल के भीतर पोल/ढोल में पोल–केवल ऊपरी दिखावा।
कविता अंग्रेज़ी में कुछ भी बोलती रहती है, अभी उससे पूछो कि ‘सेन्टेंस’ कितने प्रकार के होते हैं ‘तब ढोल के भीतर पोल’ दिखना शुरू हो जाएगा।

(त)
190. तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता–मर्मभेदी बात आजीवन नहीं भूलती।
किसी को हृदय विदारक शब्द मत कहो, क्योंकि वे आजीवन याद रहते हैं, इसीलिए कहा गया है कि तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता।
191. तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले–जब कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है और जलन अन्य व्यक्ति को होती है।
लाला रामप्रसाद को रोजाना दान पुण्य करते देख पड़ोसी उन्हें पाखण्डी कहते हैं। सच है तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले।
192. तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटोही होवे जैसा—बिना स्त्री के पुरुष का कोई ठिकाना नहीं।
जब से विकास की पत्नी उसे छोड़कर गई है तब से उसकी दशा तो तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बताऊ होवे जैसा वाली हो गई है।
193. तू डाल–डाल, मैं पात–पात–एक से बढ़कर दूसरा चालाक।
मनोज से संजय ने ₹ 10 हजार उधार लिए। माँगने पर वह आनाकानी करता था। एक दिन मनोज उसका कम्प्यूटर उठा लाया और पैसे देने पर ही देने की बात कही। इसे कहते हैं तू डाल–डाल, मैं पात–पात।
194. तख्त या तख्ता–शान से रहना या भूखो मरना।
उसकी आदत तो, तख्त या तख्ता वाली है।
195. तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर–तुम्हारी बात सच हो।
उसने मुझे लड़का होने की दुआ दी, मैंने उससे कहा तुम्हारे मुँह में घी–शक्कर।
196. तेल देखो तेल की धार देखो–सावधानी और धैर्य से काम लो।
चुनाव की घोषणा होते ही तुम जीत के दावे करने लगे। पहले तेल देखो तेल की धार देखो।
197. तलवार का खेत हरा नहीं होता–अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता।
तुम जो कर रहे हो वो ठीक नहीं है, तलवार का खेत हरा नहीं होता।
198. थूक से सत्तू सानना– कम सामग्री से काम पूरा करना।
इतने बड़े यज्ञ के लिए दस किलो घी तो थूक से सत्तू सानने के समान है।
199. थोथा चना बाजे घना–अकर्मण्य अधिक बात करता है।
राजेश के आश्वासन की क्या आशा करना, वह तो थोथा चना बाजे घना है। आपके लिए करेगा कुछ नहीं और बातें दुनिया भर की करेगा।
200. थोड़ी पूँजी धणी को खाय–अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा होता है।
सुबोध ने गेंद बनाने की फैक्ट्री लगायी, कच्चा माल उधार लेने लगा जो महँगा मिला, इस कारण उसे घाटा उठाना पड़ा। सच है थोड़ी पूँजी धणी को खाय।

(द)
201. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम–अस्थिर–विचार वाला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पाता है।
इस वर्ष तुमने न तो बी. एड. का फार्म भरा और न एम. ए. का ही, वही हाल हुआ कि दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।
202. दूध का जला छाछ भी फूंक–फूंककर पीता है—ठोकर खाने के बाद आदमी सावधान हो जाता है।
किसी काम में हानि हो जाने पर दूसरा काम करने में भी डर लगता है। भले ही उसमें डर की सम्भावना न हो, ठीक ही कहा गया है–दूध का जला छाछ (मट्ठा) भी फूंक–फूंककर पीता है।
203. दूर के ढोल सुहावने–दूर से ही कुछ चीजें अच्छी लगती हैं।
तुम दोनों दूर–दूर रहो वरना लड़ाई होगी, क्योंकि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।
204. दाल भात में मूसलचन्द–दो के बीच अनावश्यक व्यक्ति का हस्तक्षेप करना।
अजय और सुनील मित्र हैं, दोनों में घुटकर बातचीत होती रहती है, लेकिन विनय उनकी बातचीत में हस्तक्षेप करता है तब उससे कहना ही पड़ता है, दाल भात में मूसलचन्द मत बनो।
205. दाने–दाने पर मुहर–हर व्यक्ति का अपना भाग्य।
मैं और सचिन नाश्ता कर रहे थे, इतने में अनिल आ गया तो मैंने कहा दाने–दाने पर मुहर होती है।
206. दाम संवारे काम–पैसा सब काम करता है।
जब राजीव इंग्लैण्ड से भारत आया तो सब कुछ बदला–सा नजर आया इस पर साथियों ने कहा दाम संवारे सबई काम।
207. दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है–जिससे कुछ पाना होता है, उसकी धौंस डपट सहन करनी पड़ती है।
208. दूध पिलाकर साँप पोसना–शत्रु का उपकार करना।
तुम राजेन्द्र को अपने यहाँ लाकर दूध पिलाकर साँप पोसना कहावत को चरितार्थ न करना।
209. दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात–दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है।
तुम्हें मेरी सरकारी नौकरी अच्छी लग रही है। मुझे तुम्हारा व्यापार, जिससे खूब आय है। सच कहावत है दूसरे की पत्तल लम्बा–लम्बा भात।
210. दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे—किसी तरफ़ के न होना।
उसने सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा। वह चुनाव हार गया। इस प्रकार दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे।
211. दो मुल्लों में मुर्गी हलाल–दो को दिया काम बिगड़ जाता है।
भाई साहब इस प्रोजेक्ट को दो लोगों को मत दीजिए, दो मुल्लों में मुर्गी हलाल हो जाती है।

(ध)
212. धन्ना सेठ के नाती बने हैं - अपने को अमीर समझते हैं।
जेब में सौ रुपए नहीं रहते वैसे अपने को धन्ना सेठ के नाती बनते हैं।
213. धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं–सांसारिक अनुभव बहुत है।
तुम हमें बहकाने की कोशिश मत करो, ये बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं।

(न)
214. नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा–जिसके पास कुछ है ही नहीं, वह क्या अपने पर खर्च करेगा और क्या दूसरों पर।
बेरोज़गार अजय के साले की शादी है। कैसे नए कपड़े बनवाए, कैसे लेन–देन की व्यवस्था करे। सच कहावत है नंगा क्यानहायेगा, क्या निचोड़ेगा।
215. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी–काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाना।
कथा–कोई राधा नाम की वेश्या थी। उसका नृत्य बहुत प्रसिद्ध हो गया था, लेकिन उसे उतना अच्छा नाचना नहीं आता था। इसलिए जब कोई व्यक्ति उसे नाचने के लिए बुलाता तो वह यही कह देती थी कि नौ मन तेल का चिराग जलाओ, तब नाचूँगी। लोग न तो नौ मन तेल इकट्ठा कर पाते और न उसका नाच–गाना ही हो पाता। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति काम न करने के उद्देश्य से असम्भव बहाने बनाने लगता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
216. नाच न आवे आँगन टेढ़ा–जब कोई व्यक्ति दूसरों के दोष निकालकर अपनी अयोग्यता को छिपाने का प्रयास करता है।
तुम आउट हो गए और दोष अम्पायर को दे रहे हो। तुम तो नाच न आवे आँगन टेढ़ा कहावत चरितार्थ कर रहे हो।
217. नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी–से–बुरे लोगों का स्वभाव नहीं बदलता, प्रयास चाहे जैसा किया जाए।
218. नाक दबाने से मुँह खुलता है–कठोरता से कार्य सिद्ध होता है।
शाह आलम साहब, नाक दबाने से मुँह खुलता है, नीति में विश्वास करते है।
219. नक्कारखाने में तूती की आवाज–बड़ों के बीच में छोटे आदमी की कौन सुनता है। 
व्यवस्था परिवर्तन चाहने वालों की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गई है।
220. नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह–झूठी बड़ाई।
निर्भय हर जगह अपनी धन–दौलत का गुणगान करता रहता है। एक दिन अजय ने उससे कह दिया नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ–नौ ब्याह।
221. नदी नाव संयोग–कभी–कभी मिलना।
अरे आज तुम इतने दिन बाद मिल गए, ये तो नदी नाव संयोग वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
222. नकटा बूचा सबसे ऊँचा–निर्लज्ज आदमी सबसे बड़ा है।
निर्भय से जीतना असम्भव है। उस पर तो नकटा बूचा सबसे ऊँचा वाली कहावत लागू होती है।
223. नेकी कर और कुएँ में डाल–भलाई का काम करके फल की आशा मत करो।
मेरा तो सिद्धान्त है नेकी कर और कुएँ में डाल। इसलिए जिसकी मदद होती है कर देता हूँ।
224. नौ नकद, न तेरह उधार–नकद का काम उधार के काम से अच्छा है।
व्यापार में लाला जी पैसे तो आपको नकद देने पड़ेंगे। हमारा प्रकाशन नौ नकद न तेरह उधार की कहावत में विश्वास करता है।
225. नया नौ दिन पुराना सौ दिन–पुरानी चीजें ज्यादा दिन चलती हैं।
मैंने एक साइकिल अभी–अभी एक वर्ष पूर्व ली थी तभी खराब हो गई, लेकिन पन्द्रह वर्ष पहले ली गई हीरो साइकिल अभी सही चल रही है।

(प)
226. पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी–पत्नी देखती है कि मेरे पति के पास कितना धन है और माँ देखती है कि मेरे बेटे का पेट अच्छी तरह भरा है या नहीं। 
अभय जब ऑफिस से घर आता है तो पत्नी कोई–न–कोई फरमाइश कर पैसे माँगती है, जबकि माँ पूछती बेटा तूने दिन में क्या खाया, आ खाना खा ले। कहावत सच है, पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी।
227. पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल–योग्यतानुसार कार्य न मिलना।
उमेश पी–एच डी. है, लेकिन क्लर्की करता है, इसलिए कहा गया है–पढ़े फ़ारसी बेचे तेल यह देखो कुदरत का खेल।
228. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं–पराधीनता सदैव दुःखदायी होती है।
तुलसीदास जी ने कहा है–पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। करि विचार देखहु मन माँही।
229. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं—सभी के गुण समान नहीं होते, उनमें कुछ न कुछ अन्तर होता है। 
रामलाल के तीन बेटे सरकारी अधिकारी हैं और दो बेटे क्लर्क। सच है पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती।
230. पराये धन पर लक्ष्मी नारायण–दूसरे के धन पर गुलछरें उड़ाना।
तुम तो पराये धन पर लक्ष्मी नारायण बन रहे हो।
231. पाँचों सवारों में मिलना–अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना।
वह भले ही पैसे वाला न हो लेकिन पाँचों सवारों में मिलना चाहता है।
232. पानी पीकर जात पूछते हो–काम करने के बाद उसके अच्छे–बुरे पहलुओं पर विचार करना।
पहले लड़की की शादी अनजान घर में कर दी अब पूछ रहे हो लोग कैसे हैं? आप तो पानी पीकर जात पूछने वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हो।

(फ)
233. फ़कीर की सूरत ही सवाल है—फ़कीर कुछ माँगे या न माँगे, यदि सामने आ जाए तो समझ लेना चाहिए कि कुछ माँगने ही आया।
शर्मा जी जब घर आते हैं कुछ न कुछ माँगकर ले जाते हैं। जब वे परसों घर आए तो मैंने दो सौ रुपए दे दिए। बीवी ने पूछा बिना माँगे क्यों दिए तो कहा फ़कीर की सूरत ही सवाल है।
234. फलेगा सो झड़ेगा– उन्नति के पश्चात् अवनति अवश्यम्भावी है।
एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अवनति होती है, क्योंकि फलेगा सो झड़ेगा।

(ब)
235. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद–जब कोई व्यक्ति ज्ञान के अभाव में किसी वस्तु की कद्र नहीं करता है।
मनीष को साम्यवाद समझा रहे हो। बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।
236. बद अच्छा बदनाम बुरा–बुरे कर्मों की अपेक्षा कलंकित होना अधिक बुरा है।
मंजर एक बार चोरी करते पकड़ा गया तब से पूरा मुहल्ला उसे चोर समझता है जबकि उस मुहल्ले में अनेक चोर हैं, जो पकड़े नहीं गए। सच है बद अच्छा बदनाम बुरा।
237. बनिया मीत न वेश्या सती–बनिया किसी का मित्र नहीं होता और वेश्या चरित्रवान नहीं होती।
शर्मा जी पड़ोस के बनिये चन्द्रप्रकाश के साझे में और वेश्या से प्यार में लुटकर अपने को बर्बाद कर बैठे तो लोगों ने कहा बनिया मीत न वेश्या सती।
238. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय–जो कुछ हो चुका है उसे भूलकर भविष्य के लिए सँभल जाना चाहिए।
तुम पिछले दो वर्ष से पी. सी. एस. में सलेक्ट नहीं हो रहे। निराश न हो, इस वर्ष जमकर मेहनत करो। कहावत भी है, बीती ताहि बिसार द्रे आगे की सुधि लेया।
239. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते होय–बुरे कर्मों का परिणाम अच्छा नहीं हो सकता।
आज तक गुण्डागर्दी करते रहे, अब समाज में सम्मान पाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव है? क्योंकि बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते खाय।

(भ)
240. भीगी बिल्ली बताना–बहाना बनाना।
यह कहावत ऐसे आलसी नौकर की कथा पर आधारित है, जो अपने मालिक की बात को किसी न किसी बहाने टाल दिया करता था। एक बार रात के समय मालिक ने कहा, “देखो बाहर पानी तो नहीं बरस रहा है? नौकर ने कहा, “हाँ बरस रहा है।’ मालिक ने पूछा “तुम्हें कैसे मालूम हुआ?” नौकर ने कहा, “अभी एक बिल्ली मेरे पास से निकली थी, उसका शरीर मैंने टटोला, तो वह भीगी थी।”
241. भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी–जब कोई स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति बुरी तरह से गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाता है।
राजू शादी के पश्चात् नेतागिरी भूल गया। सच है भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी।
242. भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय–मूर्ख अच्छी वस्तु की कद्र नहीं करते, मूर्खों को उपदेश देना व्यर्थ है।
भारत में मार्क्सवाद की शिक्षा देना ऐसा ही है जैसे भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय।

(म)
243. मन चंगा तो कठौती में गंगा–यदि मन शुद्ध है तो तीर्थाटन आवश्यक नहीं है।
मनुष्य मन से पवित्र है तो सभी तीर्थ उसके पास हैं। अतः भक्त रविदास ने कहा है–मन चंगा तो कठौती में गंगा।
244. मान न मान मैं तेरा मेहमान–जब कोई व्यक्ति जबर्दस्ती किसी पर बोझ बनता है तब यह कहावत कही जाती है।
245. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक - सीमित क्षेत्र तक पहुँच।
वह अधिक से अधिक ग्राम प्रधान के पास जाएगा, मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।
246. मेरी ही बिल्ली और मुझसे म्याऊँ–जब कोई व्यक्ति अपने आश्रयदाता को आँख दिखाता है तब यह कहावत प्रयुक्त होती है।

(य)
247. यह मुँह और मसूर की दाल–जब कोई व्यक्ति अपनी योग्यता से अधिक पाने की अभिलाषा करता है तब यह कहावत चरितार्थ होती है।
सुधा एम. ए. द्वितीय श्रेणी में है और वाइस चान्सलर बनने के ख्वाब देखती है, ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है– यह मुँह और मसूर की दाल।

(र)
248. रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई–स्वाभिमानी व्यक्ति बुरी अवस्था को प्राप्त होने पर भी अपनी शान नहीं छोड़ता है।
अमेरिका ने सद्दाम को पकड़ लिया पर उसने कुछ नहीं बताया न दबा। सच है रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई।
149. राम नाम जपना, पराया माल अपना– ऊपर से भक्त, भीतर से ठग होना।
आज के अधिकतर साधु–संत अपने बुरे कामों से जनमानस को मूर्ख बनाकर ‘राम नाम जपना, पराया माल अपना’ वाली नीति को चरितार्थ कर ठग रहे हैं।

(ल)
250. लकड़ी के बल बन्दर नाचे–दुष्ट लोग भय से ही काम करते हैं। अत: कहा गया है–लकड़ी के बल बन्दर नाचे।

(व)
251. वही मन, वही चालीस सेर–बात एक ही है, दोनों बातों में कोई अन्तर नहीं।
मैंने तुम्हारी पुस्तक तुम्हारे घर में दे दी है विश्वास न हो तो अपने भाई से पूछ लो या फिर घर जाकर देख लो, क्योंकि “वही मन, वही चालीस सेर।”

(श)
252. शक्ल चुडैल की, मिज़ाज परियों का–बेकार का नखरा।
निशा कुछ हद तक तो गुणवान है, परन्तु कभी–कभी ऊटपटाँग बातें करती है। तब कहना पड़ता है, “शक्ल चुडैल की मिज़ाज परियों का।”
253. शेख़ी सेठ की, धोती भाड़े की—कुछ न होने पर भी बड़प्पन दिखाना।
सेठ पन्नालाल अपने व्यापार में सारा धन लगाकर पूरी तरह से खोखले हो चुके हैं फिर भी उनका हाल ‘शेखी सेठ की, धोती भाड़े की’ के समान है।

(स)
254. सब धान बाइस पंसेरी–अच्छे–बुरे को एक समान समझना।
अयोग्य अधिकारी अच्छे–बुरे सभी कर्मचारियों को समान मानकर सब धान बाइस पंसेरी तौलते हैं।
255. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता–सर्वत्र सीधेपन से काम नहीं चलता है।
अशोक की जब तक पिटाई नहीं होगी तब तक नहीं पड़ेगा, ठीक ही कहा गया है सीधी उँगली से घी नहीं निकलता।
256. सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजौ रंग–दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता।
अलीजान को लोगों ने बहुत समझाया, किन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ, ठीक कहा गया है–सूरदास खल काली कामरि चढ़े न दूजौ रंग।
257. सौ सुनार की एक लुहार की—निर्बल की सौ चोटों की अपेक्षा बलवान की एक चोट काफी होती है।
मनोज मेरी भाईसाहब से रोज़ शिकायत करता था। एक दिन मैंने भाईसाहब से शिकायत कर दी, बच्चे को नौकरी बचानी भारी पड़ गई। तब साथी बोले सौ सुनार की एक लुहार की।
258. हाथ कंगन को आरसी क्या–प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता।
अरे बहस क्यों करते हो पुस्तक में देख लो, हाथ कंगन को आरसी क्या?
259. होनहार बिरवान के होत चीकने पात–बचपन से ही अच्छे लक्षणों का दिखाई देना।
राहुल और सचिन बचपन से ही अच्छा क्रिकेट खेलते थे जिस कारण वह अच्छे खिलाड़ी बनकर उभरे हैं कहा जा सकता है कि होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’

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