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सामान्य हिन्दी 360° | लोकोक्तियाँ | SET-38
लोकोक्तियाँ : विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों और लोक विश्वासों आदि पर आधारित चुटीली, सारगर्भित, संक्षिप्त, लोकप्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं, जिनका प्रयोग किसी बात की पुष्टि, विरोध, सीख तथा भविष्य-कथन आदि के लिए किया जाता है।
लोकोक्ति शब्द : 'लोक + उक्ति' शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन। संस्कृत में लोकोक्ति अलंकार का एक भेद भी है तथा सामान्य अर्थ में लोकोक्ति को 'कहावत' कहा जाता है।
लोकोक्तियाँ 》-《 अर्थ
जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे - जिसका जो काम होता है वही उसे कर सकता है।
जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे - जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस - शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा - जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते।
जिसके राम धनी, उसे कौन कमी - जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती।
जिसके हाथ डोई (करछी) उसका सब कोई - सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसकी खुशामद करते हैं।
जिसे पिया चाहे वही सुहागिन - जिस पर मालिक की कृपा होती है उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
जी कहो जी कहलाओ - यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे।
जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है - कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया - यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये।
जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध - कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं।
जी ही से जहान है - यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए।
जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग - जब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद दूसरा उठावे तब कहते हैं, जैसे गरीब आदमी परिश्रम करते हैं और पूँजीपति उससे लाभ उठाते हैं।
जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती - साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता।
जेठ के भरोसे पेट - जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं।
जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार - संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास - जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है।
जैसा कन भर वैसा मन भर - थोड़ी-सी चीज की जाँच करने से पता चला जाता है कि राशि कैसी है।
जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे - जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए।
जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी - जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा।
जैसा देश वैसा वेश - जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
जैसा मुँह वैसा तमाचा - जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश - जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए।
जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट - समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए।
जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीत - जैसी कोई मजदूरी देगा, वैसा ही उसका काम होगा।
जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश - निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है।
जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम, दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम - जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार - जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं।
जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच - जो जैसा होता है उसका मेल वैसों से ही होता है
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई - जिस व्यक्ति पर जितनी अधिक विपत्ति पड़ी रहती है उतना ही अधिक वह सुख का आनंद पाता है।
जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की - रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है।
जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन - चाहे गंवार पढ़-लिख ले तिस पर भी उसमें तीन गुणों का अभाव पाया जाता है। बातचीत करना, चाल-ढाल और बैठकबाजी।
जो गुड़ खाय वही कान छिदावे - जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे।
जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए - जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए।
जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम - यदि छोटे आदमियों से काम चल जाता तो बड़े लोगों को कौन पूछता।
जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है - जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है।
जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट - यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए।
जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे - जो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है।
जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए - जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते।
जो बोले सो कुंडा खोले - यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपा जाये।
जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में - जो सुख अपने घर में मिलता है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता।
जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई - जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं।
जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ - गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता।
जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान - बड़ों की लड़ाई में गरीबों की हानि होती है।
जोरू चिकनी मियाँ मजूर - पति-पत्नी के रूप में विषमता हो, पत्नी तो सुन्दर हो परन्तु पति निर्धन और कुरूप हो।
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी - स्त्री धन चाहती है और माता अपने पुत्र का स्वास्थ्य चाहती है। स्त्री यह देखना चाहती है कि मेरे पति ने कितना रुपया कमाया. माता यह देखती है कि
मेरा पुत्र भूखा तो नहीं है।
जोरू न जांता, अल्लाह मियां से नाता - जो संसार में अकेला हो, जिसके कोई न हो।
ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों- त्यों भारी होय - जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा।
ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े - ज्यों-ज्यों आमदनी बढ़े, त्यों-त्यों कंजूसी करे।
ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध - जब कोई व्यक्ति किसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है।
झगड़े की तीन जड़- जन, जमीन, जर - स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं।
झट मँगनी पट ब्याह - किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति।
झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी - जल्दी का काम अच्छा नहीं होता।
झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर - छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं।
झूठ के पांव नहीं होते - झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है।
झूठ बोलने में सरफ़ा क्या - झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता।
झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए - झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे।
टंटा विष की बेल है - झगड़ा करने से बहुत हानि होती है।
टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायकाः टका सर्वत्र पूज्यन्ते,बिन टका टकटकायते - संसार में सभी कर्म धन से होते हैं, बिना धन के कोई काम नहीं होता।
टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में - धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है।
टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा - मूर्ख को दंड देने की आवश्यकता पड़ती है और बुद्धिमानों के लिए इशारा काफी होता है।
टाट का लंगोटा नवाब से यारी - निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास।
टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए - ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो।
टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे - जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है।
ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान - ठग अनजान आदमियों को ठगता है, परन्तु बनिया जान-पहचान वालों को ठगता है।
ठुक-ठुक सोनार की, एक चोट लोहार की - जब कोई निर्बल मनुष्य किसी बलवान् व्यक्ति से बार-बार छेड़खानी करता है।
ठुमकी गैया सदा कलोर - नाटी गाय सदा बछिया ही जान पड़ती है। नाटा आदमी सदा लड़का ही जान पड़ता है।
ठेस लगे बुद्धि बढ़े - हानि सहकर मनुष्य बुद्धिमान होता है।
डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ - नाम के विपरीत गुण होने पर।
डायन को भी दामाद प्यारा - दुष्ट स्त्रियाँ भी दामाद को प्यार करती हैं।
डूबते को तिनके का सहारा - विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई - थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना।
डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार - जब कोई बिना बुलाए कहीं जाने को तैयार हो।
ढाक के वही तीन पात - सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं।
ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ - जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान् माना जाता है।
ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै - यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी।
■ लोक + उक्ति' शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन। जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है। लोकोक्ति वाक्यांश न होकर स्वतंत्र वाक्य होते हैं।
उदाहरण : उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता ' । यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता'।
बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार ज्ञात नहीं होते।